श्री लाल बहादुर शाश्त्री अपने पिता मिर्ज़ापुर
के श्री शारदा प्रसाद और अपनी माता श्रीमती रामदुलारी देवी के तीन पुत्रो
में से वे दूसरे थे। शास्त्रीजी की दो बहनें भी थीं। शास्त्रीजी के शैशव मे
ही उनके पिता का निधन हो गया। 1928 में उनका विवाह श्री गणेशप्रसाद की
पुत्री ललितादेवी से हुआ और उनके छ: संतान हुई।
स्नातक की शिक्षा समाप्त करने के पश्चात वो भारत सेवक संघ से जुड़ गये और देशसेवा का व्रत लेते हुये यहीं से अपने राजनैतिक जीवन की शुरुआत की। शास्त्रीजी विशुद्ध गाँधीवादी थे जो सारा जीवन सादगी से रहे और गरीबों की सेवा में अपनी पूरी जिंदगी को समर्पित किया। भारतीय स्वाधीनता संग्राम के सभी महत्वपूर्ण कार्यक्रमों में उनकी भागीदारी रही, और जेलों मे रहना पड़ा जिसमें 1921 का असहयोग आंदोलन और 1941 का सत्याग्रह आंदोलन सबसे प्रमुख है। उनके राजनैतिक दिग्दर्शकों में से श्री पुरुषोत्तमदास टंडन, पंडित गोविंदबल्लभ पंत, जवाहरलाल नेहरू इत्यादि प्रमुख हैं। 1929 में इलाहाबाद आने के बाद उन्होंने श्री टंडनजी के साथ भारत सेवक संघ के इलाहाबाद इकाई के सचिव के रूप में काम किया। यहीं उनकी नज़दीकी नेहरू से भी बढी। इसके बाद से उनका कद निरंतर बढता गया जिसकी परिणति नेहरू मंत्रिमंडल मे गृहमंत्री के तौर पर उनका शामिल होना था। इस पद पर वे 1951 तक बने रहे।
स्नातक की शिक्षा समाप्त करने के पश्चात वो भारत सेवक संघ से जुड़ गये और देशसेवा का व्रत लेते हुये यहीं से अपने राजनैतिक जीवन की शुरुआत की। शास्त्रीजी विशुद्ध गाँधीवादी थे जो सारा जीवन सादगी से रहे और गरीबों की सेवा में अपनी पूरी जिंदगी को समर्पित किया। भारतीय स्वाधीनता संग्राम के सभी महत्वपूर्ण कार्यक्रमों में उनकी भागीदारी रही, और जेलों मे रहना पड़ा जिसमें 1921 का असहयोग आंदोलन और 1941 का सत्याग्रह आंदोलन सबसे प्रमुख है। उनके राजनैतिक दिग्दर्शकों में से श्री पुरुषोत्तमदास टंडन, पंडित गोविंदबल्लभ पंत, जवाहरलाल नेहरू इत्यादि प्रमुख हैं। 1929 में इलाहाबाद आने के बाद उन्होंने श्री टंडनजी के साथ भारत सेवक संघ के इलाहाबाद इकाई के सचिव के रूप में काम किया। यहीं उनकी नज़दीकी नेहरू से भी बढी। इसके बाद से उनका कद निरंतर बढता गया जिसकी परिणति नेहरू मंत्रिमंडल मे गृहमंत्री के तौर पर उनका शामिल होना था। इस पद पर वे 1951 तक बने रहे।
आज २ अक्टूबर में गाँधी जयंती एवं लालबहादुर शाश्त्री जी जयंती भी है । एक
अहिंसा का पुजारी और एक राष्ट्रप्रेम की सच्ची प्रतिमा । और दोनों का
जन्मदिवस एक साथ । ये एक बड़ा सुखद संयोग है । पर बड़े दुःख का विषय है की
इस 2 अक्टूबर के पुरे महापर्व में आदरणीय लाल बहादुर शास्त्री जी कहीं खो
से जाते हैं ।
गाँधी जी और शास्त्री जी की कोई तुलना नहीं है । पर जितना देश के प्रति प्रेम गाँधी में था उतना ही शास्त्री जी में भी । पर जैसा की अक्सर होता है की एक बड़े पेड़ की छाया में छोटा पौंधा कहीं गम हो जाता है । पर हमने तो एक विराट व्यक्तित्व को ही छुपा दिया ।
यदि शास्त्री जी 2 अक्टूबर की जगह अन्य किसी और दिन पैदा हुए होते तो शायद जय जवान और जय किसान का नारा देने वाले इस महापुरुष को हम किसी दिवस के रूप में मानते । पर 2 अक्टूबर को हम इस महापुरुष को याद करना भी भूल जाते है ।
बेदाग़ छवि और देश के प्रति अपार प्रेम से भरे शास्त्री जी और गाँधी जी के जन्मदिवस की हार्दिक बधाई ।
गाँधी जी और शास्त्री जी की कोई तुलना नहीं है । पर जितना देश के प्रति प्रेम गाँधी में था उतना ही शास्त्री जी में भी । पर जैसा की अक्सर होता है की एक बड़े पेड़ की छाया में छोटा पौंधा कहीं गम हो जाता है । पर हमने तो एक विराट व्यक्तित्व को ही छुपा दिया ।
यदि शास्त्री जी 2 अक्टूबर की जगह अन्य किसी और दिन पैदा हुए होते तो शायद जय जवान और जय किसान का नारा देने वाले इस महापुरुष को हम किसी दिवस के रूप में मानते । पर 2 अक्टूबर को हम इस महापुरुष को याद करना भी भूल जाते है ।
बेदाग़ छवि और देश के प्रति अपार प्रेम से भरे शास्त्री जी और गाँधी जी के जन्मदिवस की हार्दिक बधाई ।
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