Thursday, October 4, 2012

भस्म

जहां सभी देवी-देवताओं को हमारे धर्म शास्त्रों में वस्त्राभूषणों से सुसज्जित बताया गया है वहीं भगवान शंकर को सिर्फ मृगचर्म ( हिरण की खाल ) लपेटे और भस्म लगाए बताया गया है। भस्म शिव का प्रमुख वस्त्र भी यही है क्योंकि शिव का पूरा शरीर ही भस्म से ढंका रहता है। संतों का भी एक मात्र वस्त्र भस्म ही है। अघोरी, संन्यासी और अन्य साधु भी अपने शरीर पर भस्म रमाते हैं। शिव का भस्म रमाने के पीछे कुछ वैज्ञानिक तथा आध्यामित्क कारण भी हैं। भस्म की एक विशेषता होती है कि यह शरीर के रोम छिद्रों को बंद कर देती है। इसको शरीर पर लगाने से गर्मी में गर्मी और सर्दी में सर्दी नहीं लगती। भस्म, त्वचा संबंधी रोगों में भी दवा का काम करती है। भस्म धारण करने वाले शिव यह संदेश भी देते हैं कि परिस्थितियों के अनुसार अपने आपको ढालना मनुष्य का सबसे बड़ा गुण है। रौत, स्मार्त और लौकिक ऐसे तीन प्रकार की भस्म कही जाती है। श्रुति की विधि से यज्ञ किया हो वह भस्म श्रौत है, स्मृति की विधि से यज्ञ किया हो वह स्मार्त भस्म है तथा कण्डे को जलाकर भस्म तैयार की हो वह लौकिक भस्म है। शिव का शरीर पर भस्म लपेटने का दार्शनिक अर्थ यही है कि यह शरीर जिस पर हम घमंड करते हैं, जिसकी सुविधा और रक्षा के लिए ना जाने क्या-क्या करते हैं एक दिन इसी भस्म के समान हो जाएगा। शरीर क्षणभंगुर है और आत्मा अनंत। न ही स्वात्मारामं विषयमृगतृष्णा भ्रमयति! [जो आत्मा में रमे होते हैं उन्हें सांसारिक वस्तुएँ भ्रमित नही करती]

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