एक समय की बात है , शंकराचार्य हिमालय की ओर
यात्रा कर रहे थे । तब उनके साथ उनके सभी शिष्य थे । सामने अलकनंदा नदी का
विस्तीर्ण क्षेत्र था । किसी एक शिष्य ने शंकराचार्यजी की स्तुति करना
प्रारंभ किया । उसने कहा, ‘‘ आचार्य, आप कितने ज्ञानी हैं ! यह अलकनंदा
सामने से बह रही है ना ! कितना पवित्र प्रवाह है ये ! इससे भी कितने गुना
अधिक ज्ञान आपका है ! महासागर समान !’’ उस समय शंकराचार्य जी ने हाथ का दंड
पानी
में डुबाया, बाहर निकाला एवं शिष्य
को दिखाया । ‘‘देख, कितना पानी आया ? एक बूंद आई उसपर ।'’ शंकराचार्य हंसकर
बोले, ‘‘पागल, मुझे कितना ज्ञान है बताऊं ? अलकनंदा के पात्र में जितना जल
है ना, उसका केवल एक बिंदु दंड पर आया । पूरे ज्ञान में से मेरा ज्ञान
केवल उतना ही है । जब आदि शंकराचार्य ऐसा कहते है, तो आप-हम क्या है ?
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