प्रत्येक व्यक्तित्व को मुख्य रूप से दो भागों
में विभाजित किया जा सकता है, आंतरिक व्यक्तित्व और बाहरी व्यक्तित्व।
हमारे विकास में हमारे बाहरी व्यक्तित्व की अपेक्षा आंतरिक व्यक्तित्व का
अधिक महत्त्व होता है। आमतौर पर हम आंतरिक व्यक्तित्व की उपेक्षा कर
मात्र बाहरी व्यक्तित्व के विकास के लिए ही प्रयास करते रहते हैं। इसी के
कारण असंतुलन उत्पन्न होता है। असंतुलित प्रयास में ही हमारे व्यक्तित्व का
संतु
लन और भी ज्यादा गडबड हो जाता है। यदि
हमें वास्तव में अपने बाहरी व्यक्तित्व को आकर्षक बनाना है, तो अपने
आंतरिक व्यक्तित्व के विकास की ओर ध्यान देना अनिवार्य है। जब तक हमारा मन
निर्मल नहीं होगा, तब तक हम दूषित मनोभावों से मुक्त नहीं हो सकते। दूषित
मनोभावों से मुक्त होकर ही हम अच्छी आदतों और सद्गुणों का विकास कर सकते
हैं। यही हमारे अच्छे व्यक्तित्व की कुंजी है। सद्गुणों के विकास द्वारा ही
संपूर्ण आंतरिक और बाहृय व्यक्तित्व का विकास संभव है।
No comments:
Post a Comment