मातृदेवो भव। पितृदेवो भव। आचार्यदेवो भव।
हर संतान माता, पिता एवं गुरू को ईश्वर के समान पूजनीय समझे। उनके प्रति अपने कर्त्तव्य का पालन अवश्य करो, जो कर्त्तव्यपालन ठीक से करता है वही श्रेष्ठ है। माता, पिता एवं सच्चे सदगुरू की सेवा बड़े-में-बड़ा धर्म है। गरीबों की यथासम्भव सहायता करो। रास्ते से भटके हुए लोगों को सन्मार्ग की ओर चलने की प्रेरणा दो परंतु यह सब करने के साथ उस ईश्वर को भी सदैव याद करते रहो जो हम सभी का सर्जनहार, पालनहार एवं तारणहार है। उसके स्मरण से ही सच्ची शांति, समृद्धि तथा सच्चा सुख प्राप्त होगा।
हर संतान माता, पिता एवं गुरू को ईश्वर के समान पूजनीय समझे। उनके प्रति अपने कर्त्तव्य का पालन अवश्य करो, जो कर्त्तव्यपालन ठीक से करता है वही श्रेष्ठ है। माता, पिता एवं सच्चे सदगुरू की सेवा बड़े-में-बड़ा धर्म है। गरीबों की यथासम्भव सहायता करो। रास्ते से भटके हुए लोगों को सन्मार्ग की ओर चलने की प्रेरणा दो परंतु यह सब करने के साथ उस ईश्वर को भी सदैव याद करते रहो जो हम सभी का सर्जनहार, पालनहार एवं तारणहार है। उसके स्मरण से ही सच्ची शांति, समृद्धि तथा सच्चा सुख प्राप्त होगा।
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