पश्चिम में आने से पहले भारत को मैं प्यार ही
करता था, अब तो भारत की धूलि ही मेरे लिए पवित्र है। भारत की हवा मेरे लिए
पावन है, भारत अब मेरे लिए तीर्थ है।
- विवेकानन्द (विवेकानन्द साहित्य, खण्ड 5, पृष्ठ 203)
- विवेकानन्द (विवेकानन्द साहित्य, खण्ड 5, पृष्ठ 203)
No comments:
Post a Comment