धन एवं अन्य भौतिक वस्तुओं के मोह में पड़कर
असंतुष्ट रहना तथा ग़लत और अनैतिक तरीकों से इनकी प्रप्ति करना लालसा है।
लालसा की दुर्भावना से मनुष्य में हमेशा और अधिक पाने की चाहत बनी रहती
है। इससे मनुष्य स्वार्थी बनते हैं। उनके जीवन के समस्त, कार्य, प्रयास,
चिन्तन, शक्ति और समय केवल स्वयं के हितों की सीमाओं में सिमट जाते हैं।
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