आज हम अधिकतर की सोच यही है की भौतिक विकास के
लिए हम को चालबाज, तिकड़मी, बेईमान, धोखेबाज होना चाहिए। क्योंकि चालबाज,
तिकड़मी, बेईमान, धोखेबाज, कुटिल, कपटी, छली, प्रपंची व्यक्ति को व्यावहारिक
चालाक, पटु माना जाता है।
छल और कपट को तात्कालिक स्वार्थसिद्धि के कौशल के रूप में परिभाषित किया जाता है। इसका दुष्परिणाम है कि जीवन में परस्पर अविश्वास, अपवित्रता एवं कुटिलता बढ़ती जा रही है। भोगवादी विचारधारा इन्द्रियों की तृप्ति में ही सुख मानती है इस कारण कपटता को सुखी जीवन का आधार मान लिया जाता है। अहंकार मन के कपट को बढ़ा देता है। कपट के कारण व्यक्ति खुल नहीं पाता,ऐसी स्थिति में मानसिक बेचैनी, अकारण चिन्ता, भय, कल्पित शारीरिक रोग आदि उत्पन्न हो जाते हैं।
छल और कपट को तात्कालिक स्वार्थसिद्धि के कौशल के रूप में परिभाषित किया जाता है। इसका दुष्परिणाम है कि जीवन में परस्पर अविश्वास, अपवित्रता एवं कुटिलता बढ़ती जा रही है। भोगवादी विचारधारा इन्द्रियों की तृप्ति में ही सुख मानती है इस कारण कपटता को सुखी जीवन का आधार मान लिया जाता है। अहंकार मन के कपट को बढ़ा देता है। कपट के कारण व्यक्ति खुल नहीं पाता,ऐसी स्थिति में मानसिक बेचैनी, अकारण चिन्ता, भय, कल्पित शारीरिक रोग आदि उत्पन्न हो जाते हैं।
अतः जीवन सुखमय करने के लिए सरलता, निष्कपटता, स्पष्टवादिता तथा ईमानदारी का होना अत्यंत जरूरी है।
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