ब्रह्म पुराण के अनुसार मृत्यु के पश्चात जिस
व्यक्ति का श्राद्घ कर्म नहीं किया जाता है उन्हें पितृ लोक में स्थान नहीं
मिलता है। वह भूत-प्रेत बनकर भटकते रहते हैं और कष्ट भोगते हैं। श्राद्घ
पक्ष आने पर यमराज की आज्ञा से विभिन्न योनियों में पड़े पितृगण श्राद्घ की
इच्छा से अपनी संतानों के घर के दरवाजे पर आकर बैठ जाते हैं। पितृपक्ष के
15 दिनों तक जो व्यक्ति अपने पितरों को श्रद्घापूर्वक अन्न जल भेंट करते
हैं तथा उनके नाम से ब्रह्मणों को भोजन कराते हैं वह पितरों के आशीर्वाद से
पितृदोष से मुक्त हो जाते हैं। जो लोग पितृपक्ष में पितरों का श्राद्घ
नहीं करते हैं उनकी संतान की कुण्डली में पितृदोष लगता है तथा अगले जन्म
में वह भी पितृ दोष से पीड़ित होकर कष्ट प्राप्त करते हैं।
No comments:
Post a Comment