आइये जानते हैं की हमारा आराध्य गुरु कैसा होना चाहिए ( गुरु पूर्णिमा पूर्व विशेष लेख ) :-
अक्सर हम परेशान रहते है जीवन में , की मेरा कोई गुरु नहीं है कहाँ खोजूं अपने गुरु को ? कैसे पहचानूँ गुरु स्वरुप को ऐसे ढेरों सवाल हमारे मन में होते हैं । परम श्रद्धेय स्वामी श्री श्री रामसुखदास जी ने कहा है - की तत्त्वज्ञ जीवन्मुक्त महापुरुष ही आध्यात्मिक गुरु हो सकता है। अतः जब तक तत्त्वज्ञान न हो, भगवत्प्राप्ति न हो, तब तक अपने मेँ गुरुभाव नहीँ लाना चाहिए। हाँ, कोई कल्याण की बात पूछे तो अपने मेँ जितनी जानकारी है, उसको सरलता से बता देना चाहिए। जो जिस विषय मेँ ज्ञान देता है, अज्ञता दूर करता है, उस विषय मेँ वह गुरु हो गया,चाहे नेगचार करेँ या न करेँ।
वास्तविक गुरु वही है, जिसके उपदेश से बोध हो जाय, तत्त्वज्ञान हो जाय, फिर कभी किंचित मात्र भी गुरु की आवश्यकता न रहे। गुरु वही होता है, जो किसी को अपना चेला नहीँ बनाता, अपना मातहत नहीँ बनाता । जो सबको गुरु बनाता है, वही वास्तव मेँ सबका गुरु होता है। शास्त्रोँ मेँ जहाँ गुरु का वर्णन आता है, वहाँ कहा गया है कि गुरु को श्रोत्रिय और ब्रह्मनिष्ठ होना चाहिए। वेदोँ को, शास्त्रोँ को, पुराणोँ को जाननेवाला 'श्रोत्रिय' और ब्रह्म को जानने वाला 'ब्रह्मनिष्ठ' कहलाता है। जो केवल श्रोत्रिय है, ब्रह्मनिष्ठ नहीँ है,वह शास्त्रोँ को तो पढ़ा सकता है,पर परमात्म तत्त्व का बोध नहीँ करा सकता। जो केवल ब्रह्मनिष्ठ है, श्रोत्रिय नहीँ है, वह परमात्मत्त्व का बोध तो करा सकता है,पर अनेक तरह की शंकाओँ का समाधान करने मेँ प्रायः असमर्थ होता है। हाँ, शंकाओँ का समाधान न कर सकने पर भी उसमेँ कोई कमी नहीँ रहती; कोई शंका, संदेह नहीँ रहता। अतः कोई शिष्य तर्क-वितर्क न करके तत्त्व को जानना चाहे तो वह ब्रह्मनिष्ठ उसको परमात्म तत्त्व का बोध करा सकता है। जब तक ऐसे गुरु से भेंट न हो जाए तब तक महादेव को ही अपना गुरु स्वरुप में स्वीकार करें । गुरु भक्ति करें आराधना करें ।
जय गुरुदेव ।
अक्सर हम परेशान रहते है जीवन में , की मेरा कोई गुरु नहीं है कहाँ खोजूं अपने गुरु को ? कैसे पहचानूँ गुरु स्वरुप को ऐसे ढेरों सवाल हमारे मन में होते हैं । परम श्रद्धेय स्वामी श्री श्री रामसुखदास जी ने कहा है - की तत्त्वज्ञ जीवन्मुक्त महापुरुष ही आध्यात्मिक गुरु हो सकता है। अतः जब तक तत्त्वज्ञान न हो, भगवत्प्राप्ति न हो, तब तक अपने मेँ गुरुभाव नहीँ लाना चाहिए। हाँ, कोई कल्याण की बात पूछे तो अपने मेँ जितनी जानकारी है, उसको सरलता से बता देना चाहिए। जो जिस विषय मेँ ज्ञान देता है, अज्ञता दूर करता है, उस विषय मेँ वह गुरु हो गया,चाहे नेगचार करेँ या न करेँ।
वास्तविक गुरु वही है, जिसके उपदेश से बोध हो जाय, तत्त्वज्ञान हो जाय, फिर कभी किंचित मात्र भी गुरु की आवश्यकता न रहे। गुरु वही होता है, जो किसी को अपना चेला नहीँ बनाता, अपना मातहत नहीँ बनाता । जो सबको गुरु बनाता है, वही वास्तव मेँ सबका गुरु होता है। शास्त्रोँ मेँ जहाँ गुरु का वर्णन आता है, वहाँ कहा गया है कि गुरु को श्रोत्रिय और ब्रह्मनिष्ठ होना चाहिए। वेदोँ को, शास्त्रोँ को, पुराणोँ को जाननेवाला 'श्रोत्रिय' और ब्रह्म को जानने वाला 'ब्रह्मनिष्ठ' कहलाता है। जो केवल श्रोत्रिय है, ब्रह्मनिष्ठ नहीँ है,वह शास्त्रोँ को तो पढ़ा सकता है,पर परमात्म तत्त्व का बोध नहीँ करा सकता। जो केवल ब्रह्मनिष्ठ है, श्रोत्रिय नहीँ है, वह परमात्मत्त्व का बोध तो करा सकता है,पर अनेक तरह की शंकाओँ का समाधान करने मेँ प्रायः असमर्थ होता है। हाँ, शंकाओँ का समाधान न कर सकने पर भी उसमेँ कोई कमी नहीँ रहती; कोई शंका, संदेह नहीँ रहता। अतः कोई शिष्य तर्क-वितर्क न करके तत्त्व को जानना चाहे तो वह ब्रह्मनिष्ठ उसको परमात्म तत्त्व का बोध करा सकता है। जब तक ऐसे गुरु से भेंट न हो जाए तब तक महादेव को ही अपना गुरु स्वरुप में स्वीकार करें । गुरु भक्ति करें आराधना करें ।
जय गुरुदेव ।