Friday, August 31, 2012

महाकाल स्तोत्रं

ॐ महाकाल महाकाय महाकाल जगत्पते
महाकाल महायोगिन महाकाल नमोस्तुते
महाकाल महादेव महाकाल महा प्रभो
महाकाल महारुद्र महाकाल नमोस्तुते
महाकाल महाज्ञान महाकाल तमोपहन
महाकाल महाकाल महाकाल नमोस्तुते
भवाय च नमस्तुभ्यं शर्वाय च नमो नमः
रुद्राय च नमस्तुभ्यं पशुना पतये नमः
उग्राय च नमस्तुभ्यं महादेवाय वै  नमः
भीमाय च नमस्तुभ्यं मिशानाया नमो नमः
ईश्वराय नमस्तुभ्यं तत्पुरुषाय वै नमः
सघोजात नमस्तुभ्यं शुक्ल वर्ण नमो नमः
अधः काल अग्नि रुद्राय रूद्र रूप आय वै नमः
स्थितुपति लयानाम च हेतु रूपआय वै नमः
परमेश्वर रूप स्तवं नील कंठ नमोस्तुते
पवनाय नमतुभ्यम हुताशन नमोस्तुते
सोम रूप नमस्तुभ्यं सूर्य रूप नमोस्तुते
यजमान नमस्तुभ्यं अकाशाया नमो नमः
सर्व रूप नमस्तुभ्यं विश्व रूप नमोस्तुते
ब्रहम रूप नमस्तुभ्यं विष्णु रूप नमोस्तुते
रूद्र रूप नमस्तुभ्यं महाकाल नमोस्तुते
स्थावराय नमस्तुभ्यं जंघमाय नमो नमः
नमः उभय रूपा भ्याम शाश्वताय नमो नमः
हुं हुंकार नमस्तुभ्यं निष्कलाय नमो  नमः
सचिदानंद रूपआय महाकालाय ते नमः
प्रसीद में नमो नित्यं मेघ वर्ण नमोस्तुते
प्रसीद  में महेशान दिग्वासाया नमो नमः
ॐ ह्रीं माया - स्वरूपाय सच्चिदानंद तेजसे
स्वः सम्पूर्ण मन्त्राय सोऽहं हंसाय ते नमः 
फल श्रुति
इत्येवं देव देवस्य मह्कालासय भैरवी
कीर्तितम पूजनं सम्यक सधाकानाम सुखावहम

Thursday, August 30, 2012



अष्ट चिरंजीवी


"अश्वत्थामा बलिर्व्यासो हनुमानश्चविभीषणः कृपयः परशुरामश्च सप्तेतान् चिरजीवितः ।
सप्तेतान संस्मरेत् नित्यं मार्कण्डेय् तथाष्टकम् जीवेत वर्षशतं साग्रम् अपमृत्यु विवर्जितः ।"


हिंदू इतिहास और पुराण अनुसार ऐसे आठ  व्यक्ति हैं, जो चिरंजीवी हैं। यह सब किसी न किसी वचन, नियम या शाप से बंधे हुए हैं और यह सभी दिव्य शक्तियों से संपन्न है। योग में जिन अष्ट सिद्धियों की बात कही गई है वे सारी शक्तियाँ इनमें विद्यमान है। यह परामनोविज्ञान जैसा है, जो परामनोविज्ञान और टेलीपैथी विद्या जैसी आज के आधुनिक साइंस की विद्या को जानते हैं वही इस पर विश्वास कर सकते हैं। आइये जानते हैं कि हिंदू धर्म अनुसार कौन से हैं यह
आठ जीवित महामानव। उज्जैन में स्थित यह विश्व का एकमात्र ऐसा मंदिर हैं जहाँ अष्ट चिरंजीवीयों ( अमर ) की प्रतिमाएं एक साथ स्थापित हैं जिनके दर्शन मात्र से ही रोगों का नाश होता हैं एवं आरोग्य की प्राप्ति होती हैंअष्ट चिरंजीवियों का नित्य स्मरण करने से सभी कष्ट-परेशानियों एवं संकट का निवारण होता हैं, साथ ही प्राणी आरोग्यवान, सुखी एवं दीर्घायु रहता हैं अपने एवं अपनों के जन्मदिवस पर इनका पूजन करने से मनुष्य को सभी कामनाये पूरी होती हैं ।
                    मृत्यु के सामने किसी का भी बस नहीं चलता है। किन्तु हर नियम और सिंद्धात के साथ ही कोई न कोई अपवाद भी जुड़ा होता है। अपवाद की इस सर्व व्यापकता से मृत्यु भी नहीं बच पाई है। आज यदि किसी से यह कहा जाए कि इस पृथ्वी पर कोई ऐसा भी है जो कि हजारों वर्षों से जिंदा है। वो कोई एक नहीं बल्कि पूरे आठ हैं। उन अद्भुत महाप्राणधारी अमर आत्माओं को अष्ट चिरंजीवी के नाम से जाना एवं पहचाना जाता है। यह सुनकर सहसा ही किसी को विश्वास नहीं होगा। किन्तु जो कहा जा रहा है वह पूर्णत: प्रामाणिक तथा शास्त्रसम्मत होने के साथ ही पूरी तरह विज्ञान सम्मत भी है :- 

१. राजा बलि : भक्त प्रहलाद के वंशज। भगवान वामन को अपना सब कुछ दान कर महादानी के रूप में प्रसिद्ध हुए। इनकी दानशीलता से प्रसन्न होकर स्वयं भगवान विष्णु ने इनका द्वारपाल बनना स्वीकार किया । राजा बलि के दान के चर्चे दूर-दूर तक थे। देवताओं पर चढ़ाई करने राजा बलि ने इंद्रलोक पर अधिकार कर लिया था। बलि सतयुग में भगवान वामन अवतार के समय हुए थे। राजा बलि के घमंड को चूर करने के लिए भगवान ने ब्राह्मण का भेष धारण कर राजा बलि से तीन पग धरती दान में माँगी थी। राजा बलि ने कहा कि जहाँ आपकी इच्छा हो तीन पैर रख दो। तब भगवान ने अपना विराट रूप धारण कर दो पगों में तीनों लोक नाप दिए और तीसरा पग बलि के सर पर रखकर उसे पाताल लोक भेज दिया।

२. श्री परशुराम : परशुराम राम के काल के पूर्व महान ऋषि रहे हैं। उनके पिता का नाम जमदग्नि और माता का नाम रेणुका है। पति परायणा माता रेणुका ने पाँच पुत्रों को जन्म दिया, जिनके नाम क्रमशः वसुमान, वसुषेण, वसु, विश्वावसु तथा राम रखे गए । राम की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें फरसा दिया था इसीलिए उनका नाम परशुराम हो गया । भगवान पराशुराम राम के पूर्व हुए थे, लेकिन वे चिरंजीवी होने के कारण राम के काल में भी थे। भगवान परशुराम विष्णु के छठवें अवतार हैं। इनका प्रादुर्भाव वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को हुआ, इसलिए उक्त तिथि अक्षय तृतीया कहलाती है। इनका जन्म समय सतयुग और त्रेता का संधिकाल माना जाता है।

३. श्री हनुमान : अंजनी पुत्र हनुमान को भी अजर अमर रहने का वरदान मिला हुआ है। यह राम के काल में राम भगवान के परम भक्त रहे हैं। हजारों वर्षों बाद वे महाभारत काल में भी नजर आते हैं। महाभारत में प्रसंग हैं कि भीम उनकी पूँछ को मार्ग से हटाने के लिए कहते हैं तो हनुमानजी कहते हैं कि तुम ही हटा लो, लेकिन भीम अपनी पूरी ताकत लगाकर भी उनकी पूँछ नहीं हटा पाता है। हनुमान भगवान शिव के ११ वें रूदा्रवतार माने गए हैं। बल और पुरूषार्थ देने वाला देवता किंतु भगवान श्री राम के परम सेवक और भक्त के रूप में जगत प्रसिद्ध और पूजनीय हुए। त्रेतायुग में श्रीराम के सभी बिगड़े कार्य संवारने वाले पवनपुत्र हनुमानजी को माता सीता द्वारा अमरता का वरदान प्राप्त है। इसी वजह से हनुमानजी को चिरंजीवी माना जाता है। आज भी जहां-जहां रामायण का पाठ, सुंदरकांड का पाठ या श्रीरामजी का पूजन आदि किया जाता है वहां बजरंग बली किसी न किसी रूप में अवश्य प्रकट होते हैं। 

४. श्री विभिषण : रावण के छोटे भाई विभिषण। जिन्होंने राम की नाम की महिमा जपकर अपने भाई के विरु‍द्ध लड़ाई में उनका साथ दिया और जीवन भर राम नाम जपते रहें। 

५. ऋषि वेदव्यास : महाभारतकार व्यास ऋषि पराशर एवं सत्यवती के पुत्र थे, ये साँवले रंग के थे तथा यमुना के बीच स्थित एक द्वीप में उत्पन्न हुए थे। अतएव ये साँवले रंग के कारण 'कृष्ण' तथा जन्मस्थान के कारण 'द्वैपायन' कहलाए। इनकी माता ने बाद में शान्तनु से विवाह किया, जिनसे उनके दो पुत्र हुए, जिनमें बड़ा चित्रांगद युद्ध में मारा गया और छोटा विचित्रवीर्य संतानहीन मर गया। कृष्ण द्वैपायन ने धार्मिक तथा वैराग्य का जीवन पसंद किया, किन्तु माता के आग्रह पर इन्होंने विचित्रवीर्य की दोनों सन्तानहीन रानियों द्वारा नियोग के नियम से दो पुत्र उत्पन्न किए जो धृतराष्ट्र तथा पाण्डु कहलाए, इनमें तीसरे विदुर भी थे। व्यासस्मृति के नाम से इनके द्वारा प्रणीत एक स्मृतिग्रन्थ भी है। व्यासस्मृति के नाम से इनके द्वारा प्रणीत एक स्मृतिग्रन्थ भी है। भारतीय वांड्मय एवं हिन्दू-संस्कृति व्यासजी की ऋणी है। सनातन धर्म के प्राचीन चारों वेदों ऋग्वेद, अथर्ववेद, सामवेद और यजुर्वेद का सम्पादन एवं पुराणों के रचनाकार ऋषि वेदव्यास ही हैं। ये ब्रह्मऋषि हैं इन्होंने ही चारों वेदों का सम्पादन एवं पुराणों का लेखन कार्य किया।
 
६. श्री अश्वत्थामा : अश्वथामा गुरु द्रोणाचार्य के पुत्र हैं। अश्वस्थामा के माथे पर अमरमणि है और इसीलिए वह अमर हैं, लेकिन अर्जुन ने वह अमरमणि निकाल ली थी। ब्रह्मास्त्र चलाने के कारण कृष्ण ने उन्हें शाप दिया था कि कल्पांत तक तुम इस धरती पर जीवित रहोगे, इसीलिए अश्वत्थामा आठ चिरन्जीवियों में गिने जाते हैं। माना जाता है कि वे आज भी जीवित हैं तथा अपने कर्म के कारण भटक रहे हैं। हरियाणा के कुरुक्षेत्र एवं अन्य तीर्थों में यदा-कदा उनके दिखाई देने के दावे किए जाते रहे हैं। मध्यप्रदेश के बुरहानपुर के किले में उनके दिखाई दिए जाने की घटना भी प्रचलित है। 

७.  श्री कृपाचार्य : शरद्वान् गौतम के एक प्रसिद्ध पुत्र हुए हैं कृपाचार्य। कृपाचार्य अश्वथामा के मामा और कौरवों के कुलगुरु थे। शिकार खेलते हुए शांतनु को दो शिशु प्राप्त हुए। उन दोनों का नाम कृपी और कृप रखकर शांतनु ने उनका लालन-पालन किया। महाभारत युद्ध में कृपाचार्य कौरवों की ओर से सक्रिय थे। 

८. 
मार्कण्डेय मुनि : ये अति प्राचीन मुनि हैं जिनका कल्पों में भी अंत संभव नहीं है। भगवान शिव के परम भक्त। शिव उपासना और महामृत्युंजय सिद्धि से ऋषि मार्कण्डेय अल्पायु को टाल चिरंजीवी बन गए। यह युग-युगान्तर में भी अमर माने गए हैं।



Wednesday, August 29, 2012

हमारे दो हाथ हैं, हमारा सिर भी है, हमारे पैर भी हैं। जब हमारे हाथों में कोई दर्द नहीं होता, कोई खुजली नहीं होती, मतलब कि हाथ सामान्य अवस्था में होते हैं। तब हम क्या अनुभव करते हो? कुछ नहीं जैसे हाथ हैं ही नहीं। पर होते हैं- अंग्रेजी में इस दशा को कहते हैं, 'नल पॉइंट', यानी जीरो या शून्य अवस्था !
उस 'शून्य' का अनुभव जो सारी सृष्टि में व्याप्त है। उस सृष्टि में भी है, जिस सृष्टि का मनुष्य को कुछ पता नहीं है, वहां भी है यह। समय के आखिरी छोर तक है और समय से पहले भी है। वह हर एक जगह है।
जब हमें इस शून्य का अनुभव होगा, तो उसके बाद हमारे आस-पास कितना भी दुख क्यों न हो, उस दुख के बावजूद अपने अंदर परमानंद का अनुभव करेंगें।
सब धनी हैं! सबकी गठरी लाल है। बस, उस गठरी को खोलना नहीं जानते हैं- 'इस विधि भयो कंगाल।' यानी इसी वजह से कंगाल के कंगाल रह गए। कुछ नहीं हाथ लगा।

इस संसार के अंदर आए, जो खोजा, वह मिला भी। ज्ञान खोजा, तो ज्ञान मिला। और फिर क्या हो जाता है मनुष्य के साथ? फिर वह छोटी-छोटी बातों में खो जाता है। कोई भी व्यक्ति खो देने के लिए ज्ञान को नहीं पाता है। ज्ञान को पाने का अर्थ है अपने आपको पाना, अपने आपको समझना, अपने अंदर स्थित उस शांति का अनुभव करना, अपने अंदर स्थित उस परमात्मा का अनुभव करना। यही असली बात है।
अक्सर लोग कहते हैं हम अकेलापन महसूस करते हैं। मैं कहता हूं कि तुम्हें अकेलापन महसूस करने की क्या जरूरत है? तुम जहां भी जाओ, तुम्हारा परमपिता परमेश्वर, तुम्हारा परम मित्र तुम्हारे साथ है। तुम्हें वह कभी अकेला छोड़ता ही नहीं है। जिस दिन वह साथ छोड़ देगा, बस, सब गया। वह तो आखिरी समय तक तुम्हारे साथ रहेगा। उससे बंधुत्व करो। वह जो अनुभव है, चाहे थोड़ी देर ही रहे, परंतु आनंददायक होता है।
जिस किसी ने परमात्मा के साथ कुछ क्षण बिताए हैं, उसने इस शरीर में रहते हुए खुद के भी अविनाशी होने का अनुभव किया है। जब मनुष्य अविनाशी होने का अनुभव करता है, तो फिर न कल है, न परसों। न ऊपर है, न नीचे है। न आशा है, न निराशा है। सब सम हो जाता है। समय रुक जाता है। यही है असली शांति का अनुभव।

Tuesday, August 28, 2012

 महामृत्युंजय जप     

 ॐ त्र्यम्बकम् यजामहे सुगन्धिम्पुष्टिवर्धनम्।
 उर्वारुकमिव बन्धनात् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात।।

 इस मंत्र को संपुटयुक्त बनाने के लिए इसका उच्चारण इस प्रकार किया जाता है
 ॐ हौं जूं स: ॐ भूर्भुवः स्वः
 ॐ त्र्यम्बकम् यजामहे सुगन्धिम्पुष्टिवर्धनम्।
 उर्वारुकमिव बन्धनात् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात।।
 ॐ स्वः भुवः भूः ॐ सः जूं हौं ॐ

इस मंत्र का अर्थ है : हम भगवान शंकर की पूजा करते हैं, जिनके तीन नेत्र हैं, जो प्रत्येक श्वास में जीवन शक्ति का संचार करते हैं, जो सम्पूर्ण जगत का पालन-पोषण अपनी शक्ति से कर रहे हैं। उनसे हमारी प्रार्थना है कि वे हमें मृत्यु के बंधनों से मुक्त कर दें, जिससे मोक्ष की प्राप्ति हो जाए। जिस प्रकार एक ककड़ी अपनी बेल में पक जाने के उपरांत उस बेल-रूपी संसार के बंधन से मुक्त हो जाती है, उसी प्रकार हम भी इस संसार-रूपी बेल में पक जाने के उपरांत जन्म-मृत्यु के बन्धनों से सदा के लिए मुक्त हो जाएं, तथा आपके चरणों की अमृतधारा का पान करते हुए शरीर को त्यागकर आप ही में लीन हो जाएं।

इसलिए यहां जानते हैं इस प्रभावकारी मंत्र जप के समय किन बातों का पालन आवश्यक है -
  1. मंत्र जप के वक्त पूर्व दिशा की ओर चेहरा करके बैठें।
  2. जप कुश के आसन पर बैठकर करना श्रेष्ठ होता है।
  3. मंत्र जप रुद्राक्ष की माला का उपयोग करें।
  4. जप करते वक्त शिवलिंग, शिव की मूर्ति, फोटो या महामृत्युंजय यंत्र सामने रखें।
  5. जप काल में घी का दीप और सुगंधित धूप जलाएं।
  6. मंत्र का उच्चारण स्पष्ट और शुद्ध हो।
  7. हर रोज नियत संख्या में मंत्र जप का संकल्प लें, जिसे जरूर पूरा करें।
  8. मंत्र जप की संख्या पूरी होने तक रूद्राक्ष माला गौमुखी के अंदर ही रखें।
  9. जप का स्थान हर रोज न बदलें।
  10. यथासंभव जप के दौरान शिव का अभिषेक जल या दूध से करें।
महामृत्युंजय मंत्र जप संख्या का संकल्प पूरा होने तक किसी भी प्रकार के दुराचरण न करें। चाहे वह शरीर   से हो, बातों से हो या फिर मानसिक।

Thursday, August 23, 2012

भाग्य या कर्म

पंडित विजय त्रिपाठी
भाग्य बड़ा है या कर्म इस विषय में बहुत शंकाए है इसके लिए सर्व प्रथम हमें यह जान लेना चाहिए कि प्रारब्ध और पुरुषार्थ क्या है ?
मानव में ४ प्रकार की चाहना होती है. - अर्थ , - धर्म, - काम , - मोक्ष
- अर्थ धन को ही अर्थ कहते है यह दो प्रकार का होता है , ( ) स्थावर ( ) जंगम ..
स्थावर में सोना , चांदी , रूपये , जमीन , जायदाद , मकान आदि आते है
जंगम में , गाय, भैंस , अन्य पशु आदि आते है
- धर्म- सकाम या निष्काम भाव से जो भी यज्ञ , जप, तप, दान , स्नान , तीर्थ आदि कृत्य आते है
- काम सांसारिक सुख भोग को काम कहते है, यह सुख विलास ८ प्रकार का होता है
(
) शब्द यह २ प्रकार का होता है वर्णात्मक और ध्वन्यात्मक . जिसमे व्याकरण , कोष , साहित्य , उपन्यास , गल्प , कहानी आदि वर्णात्मक में आते है , और खाल , तार और फूंक के तीन प्रकार के वाद्य यंत्र और ताल का आधा बाजा , यह साडे तीन प्रकार के बाजे ध्वन्यात्मक में आते है इन वर्णात्मक और ध्वन्यात्मक को सुनने से जो सुख मिलता है वह शब्द सुख है
(
) स्पर्श स्त्री , पुत्र , मित्र आदि के साथ मिलाने पर उनके त्वचा स्पर्श से जो सुख मिलता है वह स्पर्श सुख है
(
) रूप पहाड़ , सरोवर , सागर , सिनेमा , टेलीविजन, बाग- बगीचा , सुन्दर स्त्री / पुरुष आदि की सुंदरता को देख कर जो सुख नेत्रों से मिलता है उसे रूप सुख कहते है
(
) रस मीठा , खट्टा , नमकीन , कडुवा , तीखा और कसैला इन ६ प्रकार के रसों को चखने या खाने से जो सुख मिलता है उसे रस सुख कहते है
(
) गंध नाक से इत्र , पुष्प , तेल आदि सुगन्धित और प्याज, लहसुन आदि के सूंघने से जो सुख मिलता है उसे गंध सुख कहते है
(
) मान शरीर का आदर सत्कार होने से जो सुख ,मिलता है , उसे मान सुख कहते है
(
) बडाई नाम की प्रशंसा , वाह वाही होने से जो सुख मिलता है उसे बडाई या प्रशंसा सुख कहते है
(
) आराम सोने से , मालिश से , जो सुख मिलता है उसे आराम सुख कहते है
-मोक्ष आत्मसाक्षात्कार , तत्व ज्ञान , भगवद दर्शन , भगवत प्रेम , कल्याण , मुक्ति आदि का साधन और नाम ही मोक्ष है
इन चारों १- अर्थ , - धर्म, - काम , - मोक्ष में अर्थ और धर्म दोनों परस्पर एक दूसरे की वृद्धि करते है
इन चार में १- अर्थ , - धर्म, - काम , - मोक्ष
अर्थ , और काम ,की प्राप्ति में प्रारब्ध ( भाग्य ) की मुख्यता है अर्थात यह दोनों भाग्य वश पूर्व के प्रारब्ध वश ही न्यूनाधिक प्राप्त होते है ..इन २ में भाग्य ( प्रारब्ध ) की मुख्यता और पुरुषार्थ की गौणता है यहाँ पुरुषार्थ का कोई जोर नहीं
धर्म और मोक्ष इन दोनों में पुरुषार्थ की मुख्यता और प्रारब्ध की गौणता है
प्रारब्ध और पुरुषार्थ दोनों का क्षेत्र अलग अलग है और दोनों अपने क्षेत्र में प्रधान है
अब एक गहन बात सृष्टि में जो भी मानव सर्व प्रथम जन्मा होगा वह सब कुछ ( प्रारब्ध वश ) लेकर ही जन्मा होगा क्योंकि तब उसके पास पुरुषार्थ दिखाने का समय ही नहीं रहा होगा
अत: बड़ा भाई प्रारब्ध ( भाग्य ) और छोटा भाई ( पुरुषार्थ )
आत्मीयों मेरी सामान्य बुद्धि में जो स्मृति में था लिख दिया कोई त्रुटि हो तो सुधार लीजियेगा और मुझ अकिंचन को क्षमा कीजियेगा
  By :-Pandit Vijay Tripathi