इस हेतू हमें अपने नेत्र को स्वस्थ रखना होगा । अतः यह मुद्रा प्रयोग करें जिसे प्राण मुद्रा कहतें हैं । प्राणमुद्रा- अंगूठे से तीसरी अनामिका यानी रिंग फिंगर तथा चौथी कनिष्ठिका यानी लिटिल फिंगर दोनों अँगुलियों के पोरों को एकसाथ अंगूठे के पोर के साथ मिलाकर शेष दोनों अँगुलियों को अपने सीध में खडा रखने से जो मुद्रा बनती है उसे प्राण मुद्रा कहते है। ह्रदय रोग में रामबाण तथा नेत्रज्योति बढाने में यह मुद्रा बहुत सहायक है। अंगूठे से तीसरी अनामिका तथा चौथी कनिष्ठिका अँगुलियों के पोरों को एकसाथ अंगूठे के पोर के साथ मिलाकर बाकि दोनों अँगुलियों को अपने सीध में खडा रखने से जो मुद्रा बनती है उसे प्राण मुद्रा कहते हैं। ह्रदय रोग में रामबाण तथा नेत्रज्योति बढाने में यह मुद्रा बहुत सहायक है।
इस हेतू संपर्क करें । लिंक निचे दिया गया है :-
http://donateeyes.org/registration/registration-form.php
आइये इस सत्कर्म में अपनी भागीदारी सुनिश्चित करें !!
ReplyDelete