पृथ्वी पर केवल मनुष्य ही ऐसा
प्राणी है , जिसमे सृष्टि के अन्य प्राणियों के गुण भी व्याप्त
है..प्रत्येक मनुष्य का जन्म जब होता है तब " पशु भाव " होता है, जैसे जैसे
मनुष्य सामर्थ्यवान होता है उसमे " वीर भाव " की प्रधानता होती है...और जब
वह शुद्ध और परिष्कृत हो जाता है तब " दिव्य भाव " दृष्टिगोचर होता है.!.
श्री गुरुभ्यो नमः !!
ReplyDeleteसुन्दर सत्य वचन !!