अष्ट चिरंजीवी
"अश्वत्थामा बलिर्व्यासो हनुमानश्चविभीषणः कृपयः परशुरामश्च सप्तेतान् चिरजीवितः ।
सप्तेतान संस्मरेत् नित्यं मार्कण्डेय् तथाष्टकम् जीवेत वर्षशतं साग्रम् अपमृत्यु विवर्जितः ।"
हिंदू इतिहास और पुराण अनुसार ऐसे आठ व्यक्ति हैं, जो चिरंजीवी हैं। यह सब किसी न किसी वचन, नियम या शाप से बंधे हुए हैं और यह सभी दिव्य शक्तियों से संपन्न है। योग में जिन अष्ट सिद्धियों की बात कही गई है वे सारी शक्तियाँ इनमें विद्यमान है। यह परामनोविज्ञान जैसा है, जो परामनोविज्ञान और टेलीपैथी विद्या जैसी आज के आधुनिक साइंस की विद्या को जानते हैं वही इस पर विश्वास कर सकते हैं। आइये जानते हैं कि हिंदू धर्म अनुसार कौन से हैं यह आठ जीवित महामानव। उज्जैन में स्थित यह विश्व का एकमात्र ऐसा मंदिर हैं जहाँ अष्ट चिरंजीवीयों ( अमर ) की प्रतिमाएं एक साथ स्थापित हैं । जिनके दर्शन मात्र से ही रोगों का नाश होता हैं एवं आरोग्य की प्राप्ति होती हैं। अष्ट चिरंजीवियों का नित्य स्मरण करने से सभी कष्ट-परेशानियों एवं संकट का निवारण होता हैं, साथ ही प्राणी आरोग्यवान, सुखी एवं दीर्घायु रहता हैं । अपने एवं अपनों के जन्मदिवस पर इनका पूजन करने से मनुष्य को सभी कामनाये पूरी होती हैं ।
मृत्यु के सामने किसी का भी बस नहीं चलता है। किन्तु हर नियम
और सिंद्धात के साथ ही कोई न कोई अपवाद भी जुड़ा होता है। अपवाद की इस सर्व
व्यापकता से मृत्यु भी नहीं बच पाई है। आज यदि किसी से यह कहा जाए कि इस
पृथ्वी पर कोई ऐसा भी है जो कि हजारों वर्षों से जिंदा है। वो कोई एक नहीं
बल्कि पूरे आठ हैं। उन अद्भुत महाप्राणधारी अमर आत्माओं को अष्ट चिरंजीवी
के नाम से जाना एवं पहचाना जाता है। यह सुनकर सहसा ही किसी को विश्वास नहीं
होगा। किन्तु जो कहा जा रहा है वह पूर्णत: प्रामाणिक तथा शास्त्रसम्मत
होने के साथ ही पूरी तरह विज्ञान सम्मत भी है :-
२. श्री परशुराम : परशुराम राम के काल के पूर्व महान ऋषि रहे हैं। उनके पिता का नाम जमदग्नि और माता का नाम रेणुका है। पति परायणा माता रेणुका ने पाँच पुत्रों को जन्म दिया, जिनके नाम क्रमशः वसुमान, वसुषेण, वसु, विश्वावसु तथा राम रखे गए । राम की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें फरसा दिया था इसीलिए उनका नाम परशुराम हो गया । भगवान पराशुराम राम के पूर्व हुए थे, लेकिन वे चिरंजीवी होने के कारण राम के काल में भी थे। भगवान परशुराम विष्णु के छठवें अवतार हैं। इनका प्रादुर्भाव वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को हुआ, इसलिए उक्त तिथि अक्षय तृतीया कहलाती है। इनका जन्म समय सतयुग और त्रेता का संधिकाल माना जाता है।
३. श्री हनुमान : अंजनी पुत्र हनुमान को भी अजर अमर रहने का वरदान मिला हुआ है। यह राम के काल में राम भगवान के परम भक्त रहे हैं। हजारों वर्षों बाद वे महाभारत काल में भी नजर आते हैं। महाभारत में प्रसंग हैं कि भीम उनकी पूँछ को मार्ग से हटाने के लिए कहते हैं तो हनुमानजी कहते हैं कि तुम ही हटा लो, लेकिन भीम अपनी पूरी ताकत लगाकर भी उनकी पूँछ नहीं हटा पाता है। हनुमान भगवान शिव के ११ वें रूदा्रवतार माने गए हैं। बल और पुरूषार्थ देने वाला देवता किंतु भगवान श्री राम के परम सेवक और भक्त के रूप में जगत प्रसिद्ध और पूजनीय हुए। त्रेतायुग में श्रीराम के सभी बिगड़े कार्य संवारने वाले पवनपुत्र हनुमानजी को माता सीता द्वारा अमरता का वरदान प्राप्त है। इसी वजह से हनुमानजी को चिरंजीवी माना जाता है। आज भी जहां-जहां रामायण का पाठ, सुंदरकांड का पाठ या श्रीरामजी का पूजन आदि किया जाता है वहां बजरंग बली किसी न किसी रूप में अवश्य प्रकट होते हैं।
४. श्री विभिषण : रावण के छोटे भाई विभिषण। जिन्होंने राम की नाम की महिमा जपकर अपने भाई के विरुद्ध लड़ाई में उनका साथ दिया और जीवन भर राम नाम जपते रहें।
५. ऋषि वेदव्यास : महाभारतकार व्यास ऋषि पराशर एवं सत्यवती के पुत्र थे, ये साँवले रंग के थे तथा यमुना के बीच स्थित एक द्वीप में उत्पन्न हुए थे। अतएव ये साँवले रंग के कारण 'कृष्ण' तथा जन्मस्थान के कारण 'द्वैपायन' कहलाए। इनकी माता ने बाद में शान्तनु से विवाह किया, जिनसे उनके दो पुत्र हुए, जिनमें बड़ा चित्रांगद युद्ध में मारा गया और छोटा विचित्रवीर्य संतानहीन मर गया। कृष्ण द्वैपायन ने धार्मिक तथा वैराग्य का जीवन पसंद किया, किन्तु माता के आग्रह पर इन्होंने विचित्रवीर्य की दोनों सन्तानहीन रानियों द्वारा नियोग के नियम से दो पुत्र उत्पन्न किए जो धृतराष्ट्र तथा पाण्डु कहलाए, इनमें तीसरे विदुर भी थे। व्यासस्मृति के नाम से इनके द्वारा प्रणीत एक स्मृतिग्रन्थ भी है। व्यासस्मृति के नाम से इनके द्वारा प्रणीत एक स्मृतिग्रन्थ भी है। भारतीय वांड्मय एवं हिन्दू-संस्कृति व्यासजी की ऋणी है। सनातन धर्म के प्राचीन चारों वेदों ऋग्वेद, अथर्ववेद, सामवेद और यजुर्वेद का सम्पादन एवं पुराणों के रचनाकार ऋषि वेदव्यास ही हैं। ये ब्रह्मऋषि हैं इन्होंने ही चारों वेदों का सम्पादन एवं पुराणों का लेखन कार्य किया।
६. श्री अश्वत्थामा : अश्वथामा गुरु द्रोणाचार्य के पुत्र हैं। अश्वस्थामा के माथे पर अमरमणि है और इसीलिए वह अमर हैं, लेकिन अर्जुन ने वह अमरमणि निकाल ली थी। ब्रह्मास्त्र चलाने के कारण कृष्ण ने उन्हें शाप दिया था कि कल्पांत तक तुम इस धरती पर जीवित रहोगे, इसीलिए अश्वत्थामा आठ चिरन्जीवियों में गिने जाते हैं। माना जाता है कि वे आज भी जीवित हैं तथा अपने कर्म के कारण भटक रहे हैं। हरियाणा के कुरुक्षेत्र एवं अन्य तीर्थों में यदा-कदा उनके दिखाई देने के दावे किए जाते रहे हैं। मध्यप्रदेश के बुरहानपुर के किले में उनके दिखाई दिए जाने की घटना भी प्रचलित है।
७. श्री कृपाचार्य : शरद्वान् गौतम के एक प्रसिद्ध पुत्र हुए हैं कृपाचार्य। कृपाचार्य अश्वथामा के मामा और कौरवों के कुलगुरु थे। शिकार खेलते हुए शांतनु को दो शिशु प्राप्त हुए। उन दोनों का नाम कृपी और कृप रखकर शांतनु ने उनका लालन-पालन किया। महाभारत युद्ध में कृपाचार्य कौरवों की ओर से सक्रिय थे।
८. मार्कण्डेय मुनि : ये अति प्राचीन मुनि हैं जिनका कल्पों में भी अंत संभव नहीं है। भगवान शिव के परम भक्त। शिव उपासना और महामृत्युंजय सिद्धि से ऋषि मार्कण्डेय अल्पायु को टाल चिरंजीवी बन गए। यह युग-युगान्तर में भी अमर माने गए हैं।
१. राजा बलि : भक्त प्रहलाद के वंशज। भगवान वामन को अपना सब कुछ दान कर महादानी के रूप
में प्रसिद्ध हुए। इनकी दानशीलता से प्रसन्न होकर स्वयं भगवान विष्णु ने
इनका द्वारपाल बनना स्वीकार किया । राजा
बलि के दान के चर्चे दूर-दूर तक थे। देवताओं पर चढ़ाई करने राजा बलि ने
इंद्रलोक पर अधिकार कर लिया था। बलि सतयुग में भगवान वामन अवतार के समय हुए
थे। राजा बलि के घमंड को चूर करने के लिए भगवान ने ब्राह्मण का भेष धारण
कर राजा बलि से तीन पग धरती दान में माँगी थी। राजा बलि ने कहा कि जहाँ
आपकी इच्छा हो तीन पैर रख दो। तब भगवान ने अपना विराट रूप धारण कर दो पगों
में तीनों लोक नाप दिए और तीसरा पग बलि के सर पर रखकर उसे पाताल लोक भेज
दिया।
२. श्री परशुराम : परशुराम राम के काल के पूर्व महान ऋषि रहे हैं। उनके पिता का नाम जमदग्नि और माता का नाम रेणुका है। पति परायणा माता रेणुका ने पाँच पुत्रों को जन्म दिया, जिनके नाम क्रमशः वसुमान, वसुषेण, वसु, विश्वावसु तथा राम रखे गए । राम की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें फरसा दिया था इसीलिए उनका नाम परशुराम हो गया । भगवान पराशुराम राम के पूर्व हुए थे, लेकिन वे चिरंजीवी होने के कारण राम के काल में भी थे। भगवान परशुराम विष्णु के छठवें अवतार हैं। इनका प्रादुर्भाव वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को हुआ, इसलिए उक्त तिथि अक्षय तृतीया कहलाती है। इनका जन्म समय सतयुग और त्रेता का संधिकाल माना जाता है।
३. श्री हनुमान : अंजनी पुत्र हनुमान को भी अजर अमर रहने का वरदान मिला हुआ है। यह राम के काल में राम भगवान के परम भक्त रहे हैं। हजारों वर्षों बाद वे महाभारत काल में भी नजर आते हैं। महाभारत में प्रसंग हैं कि भीम उनकी पूँछ को मार्ग से हटाने के लिए कहते हैं तो हनुमानजी कहते हैं कि तुम ही हटा लो, लेकिन भीम अपनी पूरी ताकत लगाकर भी उनकी पूँछ नहीं हटा पाता है। हनुमान भगवान शिव के ११ वें रूदा्रवतार माने गए हैं। बल और पुरूषार्थ देने वाला देवता किंतु भगवान श्री राम के परम सेवक और भक्त के रूप में जगत प्रसिद्ध और पूजनीय हुए। त्रेतायुग में श्रीराम के सभी बिगड़े कार्य संवारने वाले पवनपुत्र हनुमानजी को माता सीता द्वारा अमरता का वरदान प्राप्त है। इसी वजह से हनुमानजी को चिरंजीवी माना जाता है। आज भी जहां-जहां रामायण का पाठ, सुंदरकांड का पाठ या श्रीरामजी का पूजन आदि किया जाता है वहां बजरंग बली किसी न किसी रूप में अवश्य प्रकट होते हैं।
४. श्री विभिषण : रावण के छोटे भाई विभिषण। जिन्होंने राम की नाम की महिमा जपकर अपने भाई के विरुद्ध लड़ाई में उनका साथ दिया और जीवन भर राम नाम जपते रहें।
५. ऋषि वेदव्यास : महाभारतकार व्यास ऋषि पराशर एवं सत्यवती के पुत्र थे, ये साँवले रंग के थे तथा यमुना के बीच स्थित एक द्वीप में उत्पन्न हुए थे। अतएव ये साँवले रंग के कारण 'कृष्ण' तथा जन्मस्थान के कारण 'द्वैपायन' कहलाए। इनकी माता ने बाद में शान्तनु से विवाह किया, जिनसे उनके दो पुत्र हुए, जिनमें बड़ा चित्रांगद युद्ध में मारा गया और छोटा विचित्रवीर्य संतानहीन मर गया। कृष्ण द्वैपायन ने धार्मिक तथा वैराग्य का जीवन पसंद किया, किन्तु माता के आग्रह पर इन्होंने विचित्रवीर्य की दोनों सन्तानहीन रानियों द्वारा नियोग के नियम से दो पुत्र उत्पन्न किए जो धृतराष्ट्र तथा पाण्डु कहलाए, इनमें तीसरे विदुर भी थे। व्यासस्मृति के नाम से इनके द्वारा प्रणीत एक स्मृतिग्रन्थ भी है। व्यासस्मृति के नाम से इनके द्वारा प्रणीत एक स्मृतिग्रन्थ भी है। भारतीय वांड्मय एवं हिन्दू-संस्कृति व्यासजी की ऋणी है। सनातन धर्म के प्राचीन चारों वेदों ऋग्वेद, अथर्ववेद, सामवेद और यजुर्वेद का सम्पादन एवं पुराणों के रचनाकार ऋषि वेदव्यास ही हैं। ये ब्रह्मऋषि हैं इन्होंने ही चारों वेदों का सम्पादन एवं पुराणों का लेखन कार्य किया।
६. श्री अश्वत्थामा : अश्वथामा गुरु द्रोणाचार्य के पुत्र हैं। अश्वस्थामा के माथे पर अमरमणि है और इसीलिए वह अमर हैं, लेकिन अर्जुन ने वह अमरमणि निकाल ली थी। ब्रह्मास्त्र चलाने के कारण कृष्ण ने उन्हें शाप दिया था कि कल्पांत तक तुम इस धरती पर जीवित रहोगे, इसीलिए अश्वत्थामा आठ चिरन्जीवियों में गिने जाते हैं। माना जाता है कि वे आज भी जीवित हैं तथा अपने कर्म के कारण भटक रहे हैं। हरियाणा के कुरुक्षेत्र एवं अन्य तीर्थों में यदा-कदा उनके दिखाई देने के दावे किए जाते रहे हैं। मध्यप्रदेश के बुरहानपुर के किले में उनके दिखाई दिए जाने की घटना भी प्रचलित है।
७. श्री कृपाचार्य : शरद्वान् गौतम के एक प्रसिद्ध पुत्र हुए हैं कृपाचार्य। कृपाचार्य अश्वथामा के मामा और कौरवों के कुलगुरु थे। शिकार खेलते हुए शांतनु को दो शिशु प्राप्त हुए। उन दोनों का नाम कृपी और कृप रखकर शांतनु ने उनका लालन-पालन किया। महाभारत युद्ध में कृपाचार्य कौरवों की ओर से सक्रिय थे।
८. मार्कण्डेय मुनि : ये अति प्राचीन मुनि हैं जिनका कल्पों में भी अंत संभव नहीं है। भगवान शिव के परम भक्त। शिव उपासना और महामृत्युंजय सिद्धि से ऋषि मार्कण्डेय अल्पायु को टाल चिरंजीवी बन गए। यह युग-युगान्तर में भी अमर माने गए हैं।
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