पंडित विजय त्रिपाठी |
मानव में ४ प्रकार की चाहना होती है. १- अर्थ , २- धर्म, ३- काम , ४- मोक्ष ।
१- अर्थ – धन को ही अर्थ कहते है यह दो प्रकार का होता है , ( अ ) स्थावर ( ब) जंगम ..
स्थावर में सोना , चांदी , रूपये , जमीन , जायदाद , मकान आदि आते है ।
जंगम में , गाय, भैंस , अन्य पशु आदि आते है।
२- धर्म- सकाम या निष्काम भाव से जो भी यज्ञ , जप, तप, दान , स्नान , तीर्थ आदि कृत्य आते है ।
३- काम – सांसारिक सुख भोग को काम कहते है, यह सुख – विलास ८ प्रकार का होता है ।
( क ) शब्द – यह २ प्रकार का होता है वर्णात्मक और ध्वन्यात्मक . जिसमे व्याकरण , कोष , साहित्य , उपन्यास , गल्प , कहानी आदि वर्णात्मक में आते है , और खाल , तार और फूंक के तीन प्रकार के वाद्य यंत्र और ताल का आधा बाजा , यह साडे तीन प्रकार के बाजे ध्वन्यात्मक में आते है । इन वर्णात्मक और ध्वन्यात्मक को सुनने से जो सुख मिलता है वह शब्द सुख है ।
( ख ) स्पर्श – स्त्री , पुत्र , मित्र आदि के साथ मिलाने पर उनके त्वचा स्पर्श से जो सुख मिलता है वह स्पर्श सुख है ।
( ग ) रूप – पहाड़ , सरोवर , सागर , सिनेमा , टेलीविजन, बाग- बगीचा , सुन्दर स्त्री / पुरुष आदि की सुंदरता को देख कर जो सुख नेत्रों से मिलता है उसे रूप सुख कहते है ।
( घ ) रस – मीठा , खट्टा , नमकीन , कडुवा , तीखा और कसैला इन ६ प्रकार के रसों को चखने या खाने से जो सुख मिलता है उसे रस सुख कहते है ।
( च ) गंध – नाक से इत्र , पुष्प , तेल आदि सुगन्धित और प्याज, लहसुन आदि के सूंघने से जो सुख मिलता है उसे गंध सुख कहते है ।
( छ) मान – शरीर का आदर सत्कार होने से जो सुख ,मिलता है , उसे मान सुख कहते है ।
( ज ) बडाई – नाम की प्रशंसा , वाह वाही होने से जो सुख मिलता है उसे बडाई या प्रशंसा सुख कहते है ।
( झ ) आराम – सोने से , मालिश से , जो सुख मिलता है उसे आराम सुख कहते है ।
४-मोक्ष – आत्मसाक्षात्कार , तत्व ज्ञान , भगवद दर्शन , भगवत प्रेम , कल्याण , मुक्ति आदि का साधन और नाम ही मोक्ष है ।
इन चारों १- अर्थ , २- धर्म, ३- काम , ४- मोक्ष में अर्थ और धर्म दोनों परस्पर एक दूसरे की वृद्धि करते है ।
इन चार में १- अर्थ , २- धर्म, ३- काम , ४- मोक्ष ।
अर्थ , और काम ,की प्राप्ति में प्रारब्ध ( भाग्य ) की मुख्यता है । अर्थात यह दोनों भाग्य वश पूर्व के प्रारब्ध वश ही न्यूनाधिक प्राप्त होते है ..इन २ में भाग्य ( प्रारब्ध ) की मुख्यता और पुरुषार्थ की गौणता है । यहाँ पुरुषार्थ का कोई जोर नहीं ।
धर्म और मोक्ष इन दोनों में पुरुषार्थ की मुख्यता और प्रारब्ध की गौणता है ।
प्रारब्ध और पुरुषार्थ दोनों का क्षेत्र अलग अलग है और दोनों अपने क्षेत्र में प्रधान है ।
अब एक गहन बात । सृष्टि में जो भी मानव सर्व प्रथम जन्मा होगा । वह सब कुछ ( प्रारब्ध वश ) लेकर ही जन्मा होगा । क्योंकि तब उसके पास पुरुषार्थ दिखाने का समय ही नहीं रहा होगा ।
अत: बड़ा भाई प्रारब्ध ( भाग्य ) और छोटा भाई ( पुरुषार्थ ) ।
आत्मीयों मेरी सामान्य बुद्धि में जो स्मृति में था लिख दिया । कोई त्रुटि हो तो सुधार लीजियेगा और मुझ अकिंचन को क्षमा कीजियेगा ।
By :-Pandit Vijay Tripathi
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