सत्य यही है की व्यवहार कुशल व्यक्ति अपने
नि:स्वार्थ प्रेम से बिना जान-पहचान वाले लोगों को भी आत्मीय सूत्र में
बांध लेते हैं। वे न केवल अपनी अकेली शक्ति को सामूहिक शक्ति में बदल लेते
हैं, बल्कि अपने विजय पथ को भी प्रशस्त कर लेते हैं।महाभारत के अनुसार, जो
सबका मित्र है और नित्य सब के हित में लगा रहता है, वही वास्तव में धर्म का
ज्ञाता है। गीता में सभी प्राणियों के प्रति समान भाव रखने की बात कही गई
है। उसके अनुसार, ज्ञानी पुरुष मनुष्य और पशुओं को भी समान दृष्टि से देखते
हैं। भारत की इसी व्यवहार कुशलता ने वसुधैव कुटुंबकम, विश्वबंधुत्व की
भावना को जन्म दिया।
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