इस आर्थिक युग में भौतिक सुखों की अधिक इच्छा के
कारण व्यक्ति अशांत रहता है। अति योगवाद ( भौतिक सामग्रियों ) स्वच्छंद और
अनियंत्रित भोगवाद के कारण स्वस्थ समाज का निर्माण नहीं हो पा रहा है।
इसके लिए हर मनुष्य को अनुशासित व संस्कारित होना होगा, तभी वह समाज व
सृष्टि के लिए उपयोगी होगा और व्यक्ति को संस्कारित करना ही अध्यात्म का
काम है।
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