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Thursday, October 4, 2012
वाणी
वाक ही नाम से बढ़कर है। यदि वाणी न होती तो न धर्म का और न अधर्म का ही ज्ञान होता। तथा न सत्य, न असत्य, न साधु, न असाधु, न मनोज्ञ और न अमनोज्ञ का ही ज्ञान हो सकता। वाणी ही इन सब का ज्ञान कराती है। - छान्दोग्योपनिषद (7।2।1)
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