ऐसे महापुरुषों के सत्संग में आदरपूर्वक जावें ।
दर्शक बनकर नहीं याचक बनकर, एक नन्हें-मुन्ने निर्दोष बालक बनकर जो उन्नत
किस्म के भगवदभक्त हैं अथवा ईश्वर के आनंद में रमण करने वाले तत्त्ववेत्ता
संत हैं, तो साधक के दिल का खजाना भरता रहता है।
सो संगति जल जाय जिसमें कथा नहीं राम की।
बिन खेती के बाड़ किस काम की ?
वे नूर बेनूर भले जिनमें पिया की प्यास नहीं।।
जिनमें यार की खुमारी नहीं, ब्रह्मानंद की मस्त
सो संगति जल जाय जिसमें कथा नहीं राम की।
बिन खेती के बाड़ किस काम की ?
वे नूर बेनूर भले जिनमें पिया की प्यास नहीं।।
जिनमें यार की खुमारी नहीं, ब्रह्मानंद की मस्त
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नहीं, वे नूर बेनूर होते तो कोई हरकत नहीं। प्रसिद्धि होने पर साधक के
इर्दगिर्द लोगों की भीड़ बढ़ेगी, जगत का संग लगेगा, परिग्रह बढ़ेगा और साधन
लुट जायेगा। अतः अपने-आपको साधक बतलाकर प्रसिद्ध न करो, पुजवाने और मान की
चाह भूलकर भी न करो। जिस साधक में यह चाह पैदा हो जाती है, वह कुछ ही
दिनों में भगवत्प्राप्ति का साधक न रहकर मान भोग का साधक बन जाता है। अतः
लोकैषणा का विष के समान त्याग करना चाहिए।
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