हमारे सनातन धर्म के दस लक्षण जो शास्त्रों में बताए गये हैं -
‘धृति क्षमा दमोऽस्तेयं शौचमिन्द्रिय निग्रहः। धीर विद्या सत्यमक्रोधो, दशकं धर्म लक्षणः -मनु स्मृति 6/92
( धैर्य , क्षमा , संयम , चोरी न करना , शौच ( स्वच्छता ), इन्द्रियों को वश मे रखना , बुद्धि , विद्या , सत्य और क्रोध न करना ; ये दस धर्म के लक्षण हैं । )
मनु के अनुसार दस कर्म पुण्य हैं-
धृति- हर परिस्थिति में धैर्य बनाए रखना।
क्षमा - बदला न लेना, क्रोध का कारण होने पर भी क्रोध न करना।
‘धृति क्षमा दमोऽस्तेयं शौचमिन्द्रिय निग्रहः। धीर विद्या सत्यमक्रोधो, दशकं धर्म लक्षणः -मनु स्मृति 6/92
( धैर्य , क्षमा , संयम , चोरी न करना , शौच ( स्वच्छता ), इन्द्रियों को वश मे रखना , बुद्धि , विद्या , सत्य और क्रोध न करना ; ये दस धर्म के लक्षण हैं । )
मनु के अनुसार दस कर्म पुण्य हैं-
धृति- हर परिस्थिति में धैर्य बनाए रखना।
क्षमा - बदला न लेना, क्रोध का कारण होने पर भी क्रोध न करना।
दम- उदंड न होना।
अस्तेय- दूसरे की वस्तु हथियाने का विचार न करना।
शौच- आहार की शुद्धता।
इंद्रियनिग्रह- इंद्रियों को विषयों (कामनाओं) में लिप्त न होने देना।
धी- किसी बात को भलीभांति समझना।
विद्या- धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष का ज्ञान।
सत्य- झूठ और अहितकारी वचन न बोलना।
अक्रोध- क्षमा के बाद भी कोई अपमान करें तो भी क्रोध न करना।
अस्तेय- दूसरे की वस्तु हथियाने का विचार न करना।
शौच- आहार की शुद्धता।
इंद्रियनिग्रह- इंद्रियों को विषयों (कामनाओं) में लिप्त न होने देना।
धी- किसी बात को भलीभांति समझना।
विद्या- धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष का ज्ञान।
सत्य- झूठ और अहितकारी वचन न बोलना।
अक्रोध- क्षमा के बाद भी कोई अपमान करें तो भी क्रोध न करना।
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