हमारे इस पावन धरा में संत भी है और शैतान भी,
ज्ञान भी है और अज्ञान भी, सच भी है और झूठ भी, शांति भी और अशांति भी,
हिंसा भी है अहिंसा भी, अपराध भी है और परमार्थ भी । विचार करो तुम क्या
हो, कैसे हो, और क्यूँ हो ? स्व-इच्छा से किये गए कर्मो के फल स्वरुप ही
तुम्हारी आज कि स्थिति और परिस्थिति तय हुयी है और उसके लिए तुम स्वयं
उत्तरदायी हो । तुम सब कुछ अपनी शर्तो पर तो कतई नहीं पा सकते । कुछ
अच्छा पान
े के लिए बुराई का साथ तो छोड़ना
ही होगा । आगे बढने के लिए दृष्टी सामने लक्ष्य पर रखनी होगी और मन की
कुटिलता को त्यागना होगा । शांति पाने की लिए ज्ञान पाना जरुरी है, ज्ञान
को समझने के लिए सत्संग जरुरी है । सुख और शांति पाने के लिए ज्ञान को
जीवन में उतारना जरुरी है और जीवन सही मायने सुखी तभी होगा जब हम सच का साथ
देंगे, अहिंसा में विश्वास रखेंगे और समाजिक उत्थान के लिए परमार्थ करेंगे
।
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