आर्य धर्म है वही जिसे हम कहते धर्म सनातन है ।
युग युग से ही चलता आये शाश्वत बड़ा पुरातन है ।।
वेद, पुराण, शास्त्र, रामायण; उपनिषद में जिसका वर्णन है ।
जो समझ सके कुछ तथ्यों को बस जाता उसका ही मन है ।।
परहित, दया, सत्य, अहिंसा को धर्म-पुण्य बतलाता है ।
परपीड़ा, निंदा, झूठ, हिंसा को अधर्म-पाप बताता है ।।
मानव जीवन का उद्देश्य है क्या सबको यह समझाता है ।
जीवन है क्या राम बिना सबको सदराह दिखाता है ।।
इर्ष्या, स्वार्थ, अहम, क्रोधादिक से जग नेह लगाता है ।
राम बिना आराम कहाँ जग खोजै पर न पाता है ।।
युग युग से ही चलता आये शाश्वत बड़ा पुरातन है ।।
वेद, पुराण, शास्त्र, रामायण; उपनिषद में जिसका वर्णन है ।
जो समझ सके कुछ तथ्यों को बस जाता उसका ही मन है ।।
परहित, दया, सत्य, अहिंसा को धर्म-पुण्य बतलाता है ।
परपीड़ा, निंदा, झूठ, हिंसा को अधर्म-पाप बताता है ।।
मानव जीवन का उद्देश्य है क्या सबको यह समझाता है ।
जीवन है क्या राम बिना सबको सदराह दिखाता है ।।
इर्ष्या, स्वार्थ, अहम, क्रोधादिक से जग नेह लगाता है ।
राम बिना आराम कहाँ जग खोजै पर न पाता है ।।
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