::: गीता श्लोक :::
नत्वेवाहं जातु नासं न त्वं नेमे जनाधिपाः ।
न चैव नभविष्यामः सर्वे वयमतः परम् ।।
न नहीं तु किन्तु एव निश्चित तौर पर अहम् मैं जातु किसी भी समय न असं नहीं
थे / अस्तित्व में थे न नहीं त्वम तुम न नहीं इमे ये सब जनाधिपाः राजा जन न
नहीं च भी एव निश्चित तौर पर न नहीं भविष्यामः भविष्य में सर्वे वयम हम सब
अतः परम इस काल के पश्चात ।
(श्री कृष्ण आगे अर्जुन से बोले – )
निश्चित ही पूर्व में ऐसा कोई काल नहीं था जब तू नहीं था, या मैं नहीं था
या ये सब राजागण नहीं थे । न ही आगे ऐसा कोई काल होगा जब हम सब नहीं होंगे ।
यह श्लोक यह कहता है कि जो भी है – सब स्थायी है – सिर्फ रूप बदलते हैं ।
विज्ञान भी कहता है – बाह्य रूप में बदलाव आ सकता है – परन्तु न तो नया कुछ
बन सकता है – न ही विनष्ट हो सकता है । हम सभी जीव समय के भी पूर्व से हैं
– और समय चक्र के आगे भी होंगे । किस रूप में होंगे ? हम में से कोई नहीं
जानता ।
यह कृष्ण इसलिए कह रहे हैं कि अर्जुन घोर विषाद में है ।
वह अपने पितामह भीष्म और गुरु द्रोण आदि की संभावित मृत्यु (बल्कि शायद
स्वयं अपने ही हाथ से मृत्यु ) से भयभीत है – कि वे सब न होंगे – तो मैं
जीत कर भी क्या करूंगा । कृष्ण कह रहे हैं कि यह संभव ही नहीं कि ये नहीं
होंगे – क्योंकि कुछ भी विनष्ट हो ही नहीं सकता है ।
निश्चित ही पूर्व में ऐसा कोई काल नहीं था जब तू नहीं था, या मैं नहीं था या ये सब राजागण नहीं थे । न ही आगे ऐसा कोई काल होगा जब हम सब नहीं होंगे ।
यह श्लोक यह कहता है कि जो भी है – सब स्थायी है – सिर्फ रूप बदलते हैं । विज्ञान भी कहता है – बाह्य रूप में बदलाव आ सकता है – परन्तु न तो नया कुछ बन सकता है – न ही विनष्ट हो सकता है । हम सभी जीव समय के भी पूर्व से हैं – और समय चक्र के आगे भी होंगे । किस रूप में होंगे ? हम में से कोई नहीं जानता ।
यह कृष्ण इसलिए कह रहे हैं कि अर्जुन घोर विषाद में है । वह अपने पितामह भीष्म और गुरु द्रोण आदि की संभावित मृत्यु (बल्कि शायद स्वयं अपने ही हाथ से मृत्यु ) से भयभीत है – कि वे सब न होंगे – तो मैं जीत कर भी क्या करूंगा । कृष्ण कह रहे हैं कि यह संभव ही नहीं कि ये नहीं होंगे – क्योंकि कुछ भी विनष्ट हो ही नहीं सकता है ।
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