हमें मनुष्यता की प्राप्ति धन , मकान , आभुषण
और विद्या से नही होती है ! इसकी प्राप्ति तो आत्मा की स्वच्छ्ता , शुद्धता
और ह्रदय की उदारता से होती है ! कार्य भी मनुष्य कुत्सित भावनाओ को रखकर
, दुसरे के ऐश्वर्य को लूटकर और किसी की आत्मा को सता कर मानवता को परे
धकेल दिया है ! आज ज्यो ज्यो हमारा समाज और राष्ट्र उन्नति के शिखर पर चढ़ता
जा रहा है , त्यों त्यों हम मनुष्यता से अपने से दूर करते जा रहे है !
इसकी दूरी से आपस मे वैमनस्यता के अंकुर फूट कर विशाल विष वृक्ष खड़े हो
चुके है !
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