सोये हुए इंसान को जगाया जा सकता है, पर जो
जागते हुए सो रहा है उसे कोई नहीं जगा सकता । उसी प्रकार जो अपनी जानकारी
का स्वयं आदर नहीं करता और प्राप्त बल का सदुपयोग नहीं करता, उसकी कोई भी
सहायता नहीं कर सकता । क्योंकि प्राकृतिक नियम के अनुसार विवेक के अनादर से
अविवेक की और बल के दरुपयोग से निर्बलता की ही वृद्धि होती है।
ज्यों-ज्यों प्राणी विवेक का अनादर तथा बल का दुरूपयोग करता जाता है,
त्यों-त्यों विवेक में धुंधलापन और निर्बलता उत्तरोतर बढती ही रहती है।
यहाँ तक की विवेकयुक्त जीवन छिन्न-भिन्न हो जाता है और प्राणी साधन करने के
योग्य नहीं रहता।
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