Sunday, October 14, 2012

ओम् तत् चक्षुः देव हितं पुरस्तात शुकं उच्चरत I
पश्येम शरदः शतं जीवेम शरदः शतं I
श्र्णुयाम शरदः शतं प्रब्रवाम शरदः शतं I
अदीनः स्याम शरदः शतं भूयश्च शरदः शतात् II
- यजु. ३६/२४

ब्रह्माण्ड तेरा रूप है , यह विश्व तेरा क्षेत्र है
इस विश्व को है देखता , सूरज तुम्हारा नेत्र है
हम भी इसे देखें प्रभु, सौ वर्ष तक देखें प्रभु
आँखों में तेरा तेज है , हर दृश्य तेरा चित्र है
सौ वर्ष तक इन कानों से हम , तेरे सुने गुण गान हम
तू ही हमारा इष्ट है , तू ही हमारा मित्र है
शत वर्ष तेरी भक्ति हो , रोगों से हरदम मुक्ति हो
तेरी शरण में है पिता , तू ही दयालु पितृ है

No comments:

Post a Comment