Thursday, October 4, 2012

मातृभूमि

अपि स्वर्णमयी लंका न मे लक्ष्मण रोचते।
जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी॥
हे लक्ष्मण! मुझे स्वर्णमयी लंका भी अच्छी नहीं लगती; माता और मातृभूमि स्वर्ग से भी बढ़कर होती हैं।
- भगवान राम

पृथिवीं धर्मणा धृतां शिवां स्योनामनु चरेम विश्वहा।
धर्म के द्वारा धारण की गई इस मातृभूमि की सेवा हम सदैव करते रहें।
- अथर्ववेद (12।1।17)

देश की सेवा करने में जो मिठास है, वह और किसी चीज़ में नहीं है।

- सरदार पटेल (सरदार पटेल के भाषण, पृष्ठ 259)

अपने देश या अपने शासक के दोषों के प्रति सहानुभूति रखना या उन्हें छिपाना देशभक्ति के नाम को लजाना है, इसके विपरित देश के दोषों का विरोध करना सच्ची देशभक्ति है।
- महात्मा गाँधी (सम्पूर्ण गाँधी वाङ्मय, खण्ड 41, पृष्ठ 590)

राष्ट्रीयता भी सत्य है और मानव जाति की एकता भी सत्य है । इन दोनों सत्यों के सामंजस्य में ही मानव जाति का कल्याण है ।
- अरविन्द (कर्मयोगी)

मतभेद भुलाकर किसी विशिष्ट काम के लिए सारे पक्षों का एक हो जाना ज़िन्दा राष्ट्र का लक्षण है ।
- लोकमान्य तिलक

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