Wednesday, November 13, 2013

।। अथातो ब्रह्मजिज्ञासा । १.१.१.।


॥ ॐ श्री परमात्माने नमः ॥

आप सभी के अंतर्मन में स्थापित ब्रह्मस्वरूप को प्रणाम करते हुए वेदांत - दर्शन (ब्रह्मसूत्र ) का पहला अध्याय शुभारंभ किया जा रहा है ।

परमात्मा कौन है ?

"त्वमेव माता च पिता त्वमेव |त्वमेव माता च पिता त्वमेव |
त्वमेव बंधुश्च सखा त्वमेव |त्वमेव विद्या द्रविणं त्वमेव |
त्वमेव सर्वं मम देवदेव || मुकं करोति वाचलं पंगुं लंघयते गिरिम l
यत्कृपा तमहं वन्दे परमानंदमाधवं ll

अर्थात ~ हे परमात्मा तू ही माता है, पिता भी तू ही है, तू ही भाई, तू ही सखा (सहायक) है तू ही ज्ञान तथा तू ही धन है हे देवों के देव । मेरे लिए सभी कुछ तू ही है । हे माधव यदि आपकि कृपा हो तो गुँगे भी बोल सकते है
पंगु पर्वत लांघ सकते है हे परमानन्द आपको मेरा नमन है । तो ऐसे हैं हमारे परमात्मा उनको बारम्बार नमन ।

आइये इस परमात्मा के खोज में शुरू करते है ब्रह्म सूत्र के प्रथम पाद से :-

१.१.१.।। अथातो ब्रह्मजिज्ञासा ।

अथ = अब , अतः = यहाँ से , ब्रह्मजिज्ञासा = ब्रह्मविषयक विचार आरम्भ किया जाता है ।

इस सूत्र में ब्रह्मविषयक विचार आरम्भ करने की बात कहकर यह सूचित किया गया है की ब्रह्म कौन है ? इसका स्वरुप क्या है ? वेदांत में उसका वर्णन किस प्रकार हुआ है ? इत्यादि सभी ब्रह्मविषयक बातों का विवेचन किया जाना है ।