अनमोल वचन

मनीषा देह दुर्लभ, मिलिहो न बारम्बार! तरुवर ते फल झारी पड़ा, बहुरि न लगे डार!!
प्रभु को पाने की अभिपषा अर्थात प्यास वैसे तो यू ही करोडो में से किसी एक को ही जगती है, शौभाग्य शाली है वह आत्मा जिसमे यह प्यास जगी. लेकिन भगवान् का भी आज व्यापारीकरण कर दिया गया है ! हालाकि संतो, ऋषियो और महात्माओ ने कलियुग को प्रभु की भक्ति का द्सबसे उत्तम समय बताया है! गोस्वामी तुलसीदास ने भी कहा है;-
कलियुग केवल नाम अधारा! सुमत -सुमत नर उतरेही पारा!!
जन्म- मरण के भाव सागर से पार होने के लिए कलियुग में भक्ति , प्रार्थना, योग एवं ध्यान साधना का मार्ग सुगम होगा! एक तो कलियुग में इन्सान प्रभु की अपेक्षा धन एवं ऐश्वर्य की तरफ दोड रहा है दूसरे इसके बिलकुल विपरीत आज के कलियुग में तमाम लोभी-लालची लोगो ने भी गुरु या संतो का वेश धारण कर भक्ति को व्यापर बना दिया है ! यह मानवता के लिए और मानव जाति के लिए दुःख की बात है, क्योकि जिस गुरु को मोह, लोभ और मद आदि को छोड़कर प्रभु भक्ति में लीन होने की शिक्षा मानव को देनी चाहिए वही गुरु लालच के वशीभूत होकर अनेक पर्लोभन भी शिष्यों को जकड़े हुए है! किसी को भी यह ख्याल तक नहीं आता की भक्ति गुरु तक ही ख़त्म नहीं करनी है अपितु भक्ति के माध्यम से परमात्मा को जानना और पाना भी है! जिसे देखो गुरु बनकर शिष्यों को पकडे बैठा है, कि किसी दूसरे के पास जाकर ज्ञान न शीख ले! जैसे मनुष्य आज मनुष्य न होकर एक ग्राहक मात्र बनकर रह गया है, कि दूसरे के पास गया और उनकी दुकानदारी प्रभावित हो जाएगी यही चिंता है आज के गुरुओ को? जबकि ये आधुनिक गुरु लोभ के कारण स्वयं के लिए नरक को तैयार कर रहे है!मै इस फेस बुक और ट्रस्ट के माध्यम से सभी प्रभु के प्यासों को सरोबर का मार्ग दिखने का प्रयत्न कर रह हू! क्योकि भक्ति है;- भक्ति के इस मंदिर में जो गया वो न तन लेकर लौटा और ना मन ही लेकर लौटा! भक्ति मार्ग में तन- मन सोपे बिना कुछ भी प्राप्त नहीं होता, लेकिन क्योकि पुरुष का ह्रदय कठोर होता है इसीलिए पुरुष प्रुरी तरह समर्पण नहीं कर पाता जिस कारण वह अपने अहंकार अर्थात मै का विसर्जन नहीं कर पाता जबकि नारी स्वभाव से ही प्रेम क़ी मूर्ति अर्थात कोमल ह्रदय क़ी स्वामिनी होती है, प्रकृति ने भी नारी को कोमल बनाया है अतः प्रेमअग्नि मोमबत्ती क़ी तरह पिघल जाती है! इसीलिए भक्ति के क्षेत्र में नारी हमेशा पुरुषो से आगे निकल जाती है ! नारी जब प्रेम करती है तो समग्रता के साथ करती है, लेकिन यदि नारी का प्रेम सम्पूर्ण से ना हो तो समझ लेना क़ि उसने प्रेम ही नहीं किया! यह आग का दरिया है, यहाँ डूब कर जाना है !
प्रेम गीतों को अक्सर लोग गाते है और गुनगुनाते भी है , लेकिन विरले ही प्रेम के अर्थो को जान पाते है? कोई एक होता है जो गुरु या परमेश्वर क़ी कृपा से अश्रु- सरोवर में गहरे तक डूबकर स्नान कर पाता है! संतो के सामान उनका जीवन भी एक काव्य क़ी तरह बन जाता है! प्रेम ही जिनका ओढना होता है और प्रेम ही उनका बिछौना होता है ! उनका समस्त आस्तित्व प्रेम क़ी एक पुकार होता है! ह्रदय के उस अंतपुर क़ी झाकी को जहा से प्रभु को देखा जाता है उसे वही कोई एक विरला करोडो में कोई एक ही देख पाता है! जिस पर गुरु क़ी कृपा हो गयी हो और जिसने समस्त के लिए स्वयं का समर्पण कर दिया हो! गुरु को तुम्हारा धन नहीं चाहिए और ना ही गुरु को तुम्हारी प्रतिष्ठा या पद से कोई सरोबर है! तुम कहते तो हो क़ि प्रभु मेरी नैया को भवसागर से पार लगाना लेकिन स्वयं नाव बनने के लिए तैयार नहीं हो? नाव को बनाने के लिए पहले पेड़ को स्वयं जड़ो से कट-कर अलग होना होगा फिर उसमे से छोटे-छोटे तख्ते काटे जायेंगे जिसके बाद अर्थात अंत में उसमे कीले ठोकी जाएँगी जो तख्तो को एक दुसरे से मजबूती से जोड़ेंगी! यह पेड़ के रूप में तुम स्वयं हो, तख़्त के रूप में तुम्हे अपने अन्दर से काम. क्रोध. मोह. लोभ. लालच आदि विकारो को समझ सकते हो!
यह तन विष क़ी बेलरी, गुरु अमृत क़ी खान ! शीश दिए जो सतगुरु मिले, तो भी सस्ता जान!!
जब तक तुम्हे परमात्मा ना मिले, तब तक तुम अकेले हो- अकेले हो और बस अकेले हो! खुद को कितना भी क्यों ना बहका लो, कितनी भी झूठी तसल्ली क्यों ना खुद को दो और दूसरो को भी दे दो, कितना ही क्यों ना सत्य भुलाने का प्रयत्न करो, मगर हर झूठ के पीछे सत्य खड़ा है क़ि तुम अकेले हो! दो- चार दिन सपने से खुश भले ही हो जाओ, कुछ समय के लिए अपनी आँखों को तृप्ति दे तो सकते हो, लेकिन झूठी तसल्ली के अतिरिक्त कुछ भी अंतिम परिणाम हाथ में नहीं आएगा?जो साथी तुमने जन्म के बाद बनाये है वे सब छुट जायेंगे, और कोई ना छुड़ा सकेगा तो मृत्यु साथ छुड़ा देगी! मृत्यु के बाद सभी को तुमसे छुट ही जाना है, तुमसे उम्हरे सभी साथी तब छुटेंगे जब तुम्हे साथी क़ी जरुरत होगी, तुम कहते हो क़ि मित्र वही है जो बुरे वक्त में काम आये. बिलकुल सही है लेकिन क्या मृत्यु से बड़ा भी कोई बुरा वक्त तुम्हारे जीवन में होगा? लेकिन मृत्यु के वक्त कोई काम नहीं आएगा? ना तुम्हारे द्वारा पढ़ी गयी पुस्तके, ना गाए गए गीत और ना मांग के लिए क़ी गयी पूजा. जिसे करके तुमने धार्मिक होने का अहंकार पाल लिया! सब तुम्हे विदा दे देंगे? चिता में चढोगे तो अकेले, कब्र में उतरोगे तो भी अकेले ही ! उस अनंत अंधकार में- जिसका नाम मृत्यु है- कोई ना तुम्हारे साथ जायेगा तथा कोई हाथ बढाकर तुम्हारे सांत्वना देने के लिए भी नहीं कहेगा ( भले ही सारे जीवन भर तुम उनके लिए लोगो ले गले काटते रहे. तरह -तरह से पाप कमाते रहे. चाह अपराध करके कमाते रहे जीव हत्या करीने से भी नहीं चुके. यह भी नहीं सोचा क़ी यह जीव भी उसी परमात्मा का बनाया हुआ है जीने तुम्हे बनाया था? या अन्य तरीको से लोगो को सताया) क़ि रुको मै भी तुम्हारे साथ मृत्यु लोक में चलता हू! ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,(स्वामी सरस्वती)

2 comments:

  1. shreeman, khub khub sadhuwaad hai aapko...

    agar apka whatsapp group ho to number batane ki kripa kare.

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