Sunday, May 10, 2020

मजदूरों के पलायन की बुनियाद एवं रोकथाम ।


मजदूरों के पलायन की बुनियाद एवं रोकथाम -
            इस लॉकडाउन काल में जो बात मुझे सर्वाधिक मर्माहत की है वह है
; मजदूरों का रेलपटरी पर सोते हुए मालगाड़ी से कटना तथा हजारों किलोमीटर अपने गाँव वापस लौटने के लिए पैदल चलना और अनेक मुसीबतों जैसे भूख प्यास इत्यादि का सामना करना  यह ऐसी सच्चाई है जिस पर बहुत कम लोगों का ध्यान पूर्व में गया होगा मेरी नजर में मजदूरों का पलायन की जो मुख्य वजह समझ आती है , वह है :-

१. जनसंख्या विस्फोट - इसके कारण गाँव स्तर पर रोजगार घटे हैं  यह आबादी बम धीरे धीरे एक सर्वव्यापी राष्ट्रीय समस्या बन गयी है

२. कृषि भूमि का घटना - यदि आप गौर करेंगे तो पायेंगे की आज लोग किसानी करना पसंद नहीं करते ।  कारण तो बहुत सारे हैं, पर मुख्य कारणों को देखें तो किसानी में मेहनत अधिक , लागत मूल्यों में वृद्धि और मौसम की बेरुखी  इसके कारण छोटे किसान अपने खेत बेचकर रोजगार के लिये गावों से पलायन कर जाते हैं । आज आप पायेंगें की कृषि भूमि क्रमशः घट रही है और नए नए कालोनियों का जाल बनता जा रहा है ।

३. सरकारी निति – सरकार ने अपने नागरिकों के लिए बहुत सारी कल्याणकारी योजनायें चला रखी है , जिसमें अत्यंत कम कीमत पर खाद्यान्न उपलब्ध करवाया जाता है। इसके चलते खाने-पीने की समस्या कम रह जाती है, अतः
रोजगार और बेहतर अवसरों की तलाश के चलते एक बहुत बड़ी संख्या ऐसे मजदूरों की भी हैं, जिन्हें अस्थायी या मौसमी पलायन करने वालों की श्रेणी में रखा जा सकता है ।
४. राजनीती – आज गाँव गाँव में राजनीती हर गली मोहल्ले में इस कदर पांव पसार चुकी है की, आये दिन झगडा-झंझट , मारपीट , लूटपाट , हत्या , आगजनी इत्यादि बढ़ गया है , इसके चलते बहुत सारे निम्न लोग शहरों का रुख कर लेते हैं , जिससे शांति पूर्वक जीवन यापन कर सके ।

५. ग्रामीण उद्योगों की कमी – आज भी ग्रामीण स्तर पर उद्योगों की बहुत कमी है । अधिकतर छोटे बड़े उद्योग शहरों की सीमाओं से सटे हुए या औद्योगिक क्षेत्रों में स्थापित हैं या हो रहें हैं । आज भी बाहरी उद्योग गाँव से आये हुए मजदूरों को प्राथमिकता देते हैं क्योंकि ये स्थानीय मजदूरों से कम मेहनताना पर काम लेते हैं तथा ये प्रवासी मजदूर नेतागिरी या आन्दोलन नहीं करते क्योंकि ये मजबूर होते हैं घर छोड़कर जो आये रहते हैं ।

६. मूलभूत सुविधाओं की कमी – आज भी ग्रामीण स्तर पर मूलभूत सुविधाओं की अत्यंत कमी है ; चाहे वो पक्की सड़क हो , स्वच्छ पानी की उपलब्धता हो , २४ घंटे बिजली आपूर्ति की हो या , उच्च स्तरीय चिकित्सा सुविधा हो या , उच्च शिक्षा की उपलब्धता हो या परिवहन की उपलब्धता हो । इन कारणों से भी मजदूर वर्ग शहरों की और पलायन करती है ।

७. जाती भेद – बहुतों दूरस्थ गाँव में आज भी जातिगत व्यस्था बनी हुई है जिसके चलते अधिकता बहुल जातियों की दबंगई , शोषण , प्रताड़ना , अपमान के भय से भी मजदूर वर्ग अमन चैन तलाश के कारण पलायन कर जाते हैं ।

८. शहरी चकाचौंध – यह भी एक बहुत बड़ा कारण है गाँव से पलायन का ।
पूर्व राष्ट्रपति एवं मिसाइल मैन डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम कहा करते थे कि शहरों को गांवों में ले जाकर ही ग्रामीण पलायन पर रोक लगाई जा सकती है।
 
            उपरोक्त कारणों से मजदूरों का पलायान सर्वकालिक रहा है । इसमें कमी लाने के लिए चल रहे एवं नए सरकारी योजनाओं को बनाना या संसोधन करना होगा एवं पूर्णतया अमल में लाना होगा । प्रशासन एवं ग्राम पंचायत स्तर तक इसका समुचित पालन करवाना होगा , जिससे पलायन को कम किया जा सके । इसके साथ ही पंचायत स्तर पर उन सब परिवार का, जो स्थायी तौर पर या मौसमी पलायन करते हैं उसका पूर्ण विवरण कारण सहित रखना होगा यथा प्रवास स्थल की सम्पूर्ण जानकारी ।
            आज यदि सरकार को इन प्रवासी मजदूरों को इस भयावह महामारी कोरोना के कारण देशव्यापी लॉकडाउन के कारण उत्पन्न हुए आर्थिक एवं भोजन की कमी के चलते गाँव वापस लाने में देर हुई है तो, इसका मूल कारण इन मजदूरों का लेखा जोखा पंचायत / जिला या राज्यस्तर पर जानकारी उपलब्ध न होना भी है ।
            भविष्य के लिए शासन को उन प्रत्येक ग्रामीण स्तर पर योजना बनानी होगी, जिससे पलायन दर न्यूनतम हो और राज्य के सभी ग्रामों का चहुँमुखी विकास हो ।  .................................अशोकानंद

Wednesday, August 19, 2015

नागपंचमी l

#नागपंचमी विशेष l

अनन्तं वासुकिं शेषं पद्मनाभं च कम्बलम्। शंखपाल धार्तराष्ट्रं तक्षकं कालियं तथा।।
एतानि नव नामानि नागानां च महात्मनाम्। सायंकाले पठेन्नित्यं प्रात:काले विशेषत:।।
तस्मै विषभयं नास्ति सर्वत्र विजयी भवेत्।।

विधर्मियो को लगता है की हम सनातन धर्मी पागल है , क्योंकि हम सर्प ( जहरीला जीव ) की पूजा श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को नागपंचमी को करते हैं l किन्तु वे नहीं जानते की इसके पीछे क्या राज है l आइये संक्षेप में जानने का प्रयास करते हैं :-

सनातन संस्कृति ने पशु-पक्षी, वृक्ष-वनस्पति सकारात्मक दृष्टिकोण को ध्यान रखकर सबके साथ आत्मीय संबंध जोड़ने का प्रयत्न करती है। सांप, जीव-जंतु, चूहे आदि जो फसल को नुकसान करने वाले तत्व हैं, उनका नाश करके हमारे खेतों को हरा भरा रखता है। ज्ञातव्य है की साँप हमें कई मूक संदेश भी देता है।

जीवन रक्षा की सिख - साँप तब डसता है जब हम उसके प्राण लेने का प्रयत्न करते हैं, अर्थात अपने प्राण की रक्षा करने के लिये हमें भी सतत प्रयास करना चाहिए l

सद्गुणों का संग - सांप चन्दन या केवेड़े जैसे अति सुगन्धित वृक्षों से लिपटा होता है l सद्गुण में भी सुगंध के समान ही अन्य को आकृष्ट करने की प्रवृत्ति होती है l

समर्थ बने रहने की प्रवृत्ति - सांप सदा किसी को डसकर संचित शक्ति यानी जहर को नष्ट नहीं करता l ठीक इसी प्रकार क्रोध रूपी जहर को तब तक संचित रखें जब तक मर्मान्तिक आवश्यकता न हो l

नागमणि - इसे नागराज अपने माथे पर धारण करते हैं यह संदश देता है की समाज के मुकुटमणि जैसे महापुरुषों का स्थान हमारे मस्तिष्क पर होना चाहिए। तथा हमें प्रेम से उनकी पालकी उठानी चाहिए और उनके विचारों के अनुसार अपने जीवन का निर्माण करने का अहर्निश प्रयत्न करना चाहिए। सर्व विद्याओं में मणिरूप जो अध्यात्म विद्या है, उसके लिए हमारे जीवन में अनोखा आकर्षण होना चाहिए।

इन्ही विशेष गुणों के कारण महादेव ने सर्प को अपने गले का हार बनाकर सुशोभित किया है और नारायण ने अपनी शेषशयन बनाकर l अतः समग्र सृष्टि हितार्थ बरसते बरसात के कारण निर्वासित हुआ साँप जब हमारे घर में अतिथि बनकर आता है तब उसे आश्रय देकर कृतज्ञ बुद्धि से उसका पूजन करना हमारा कर्त्तव्य हो जाता है। कभी भी नागों को दूध पिलाने का कार्य नहीं करना चाहिए। दूध पिलाना नागों की मृत्यु का कारण बनता है ऐसे में नागपंचमी के दिन नागों को दूध पिलाना अपने हाथों से अपने देवता की जान लेने के समान है। इसलिए ऐसा करने से बचना चाहिए।

सर्वे नागा: प्रीयन्तां मे ये केचित् पृथिवीतले।। ये च हेलिमरीचिस्था येन्तरे दिवि संस्थिता।
ये नदीषु महानागा ये सरस्वतिगामिन:। ये च वापीतडागेषु तेषु सर्वेषु वै नम:।।

Monday, July 7, 2014

गुरु पूर्णिमा

आइये जानते हैं की हमारा आराध्य गुरु कैसा होना चाहिए ( गुरु पूर्णिमा पूर्व विशेष लेख ) :-

अक्सर हम परेशान रहते है जीवन में , की मेरा कोई गुरु नहीं है कहाँ खोजूं अपने गुरु को ? कैसे पहचानूँ गुरु स्वरुप को ऐसे ढेरों सवाल हमारे मन में होते हैं । परम श्रद्धेय स्वामी श्री श्री रामसुखदास जी ने कहा है - की तत्त्वज्ञ जीवन्मुक्त महापुरुष ही आध्यात्मिक गुरु हो सकता है। अतः जब तक तत्त्वज्ञान न हो, भगवत्प्राप्ति न हो, तब तक अपने मेँ गुरुभाव नहीँ लाना चाहिए। हाँ, कोई कल्याण की बात पूछे तो अपने मेँ जितनी जानकारी है, उसको सरलता से बता देना चाहिए। जो जिस विषय मेँ ज्ञान देता है, अज्ञता दूर करता है, उस विषय मेँ वह गुरु हो गया,चाहे नेगचार करेँ या न करेँ।

वास्तविक गुरु वही है, जिसके उपदेश से बोध हो जाय, तत्त्वज्ञान हो जाय, फिर कभी किंचित मात्र भी गुरु की आवश्यकता न रहे। गुरु वही होता है, जो किसी को अपना चेला नहीँ बनाता, अपना मातहत नहीँ बनाता । जो सबको गुरु बनाता है, वही वास्तव मेँ सबका गुरु होता है। शास्त्रोँ मेँ जहाँ गुरु का वर्णन आता है, वहाँ कहा गया है कि गुरु को श्रोत्रिय और ब्रह्मनिष्ठ होना चाहिए। वेदोँ को, शास्त्रोँ को, पुराणोँ को जाननेवाला 'श्रोत्रिय' और ब्रह्म को जानने वाला 'ब्रह्मनिष्ठ' कहलाता है। जो केवल श्रोत्रिय है, ब्रह्मनिष्ठ नहीँ है,वह शास्त्रोँ को तो पढ़ा सकता है,पर परमात्म तत्त्व का बोध नहीँ करा सकता। जो केवल ब्रह्मनिष्ठ है, श्रोत्रिय नहीँ है, वह परमात्मत्त्व का बोध तो करा सकता है,पर अनेक तरह की शंकाओँ का समाधान करने मेँ प्रायः असमर्थ होता है। हाँ, शंकाओँ का समाधान न कर सकने पर भी उसमेँ कोई कमी नहीँ रहती; कोई शंका, संदेह नहीँ रहता। अतः कोई शिष्य तर्क-वितर्क न करके तत्त्व को जानना चाहे तो वह ब्रह्मनिष्ठ उसको परमात्म तत्त्व का बोध करा सकता है। जब तक ऐसे गुरु से भेंट न हो जाए तब तक महादेव को ही अपना गुरु स्वरुप में स्वीकार करें । गुरु भक्ति करें आराधना करें ।

जय गुरुदेव ।

Sunday, December 8, 2013

जल का अस्थाई रूप बर्फ है, बर्फ जल में परिणित होती ही है। जल भी अस्थाई रूप है, वह भाप बनता है। रूप बदला करते हैं, अरूप जस का तस रहता है। रूप देखा जाता है, अरूप का दर्शन होता है। जाहिर है कि दर्शन का मतलब सिर्फ देखना नहीं होता। दर्शन आत्मिक अनुभूति है।
शौच (Purity) का अर्थ मलिनता को बाहर निकालना भी है। यह दो प्रकार के होते हैं- बाह्य और आभ्यन्तर। बाह्य का अर्थ बाहरी शारीरिक शुद्धि से है और आभ्यन्तर का अर्थ आंतरिक अर्थात मन वचन और कर्म की शुद्धि से है। जब व्यक्ति शरीर, मन, वचन और कर्म से शुद्ध रहता है तब उसे स्वास्थ्‍य और सकारात्मक ऊर्जा का लाभ मिलना शुरू हो जाता है। ईर्ष्या, द्वेष, तृष्णा, अभिमान, कुविचार और पंच क्लेश को छोड़ने से दया, क्षमा, नम्रता, स्नेह, मधुर भाषण तथा त्याग का जन्म होता है। इससे मन और शरीर में जाग्रति का जन्म होता है। विचारों में सकारात्मकता बढ़कर उसके असर की क्षमता बढ़ती है।
जब भी समय मिले मौन हो जाओ । मन को शां‍त करने के लिए मौन से अच्छा और कोई दूसरा रास्ता नहीं । जब भी मौन रहें एवं इस दौरान सिर्फ श्वासों के आवागमन को ही महसूस करते हुए उसका आनंद लें। अपने श्वासों के आवागमन पर ध्यान लगाए रखें और सामने जो भी दिखाई या सुनाई दे रहा है उसे उसी तरह देंखे जैसे कोई शेर सिंहावलोकन करता है। पिछले कई वर्षों से जो व्यर्थ की बहस करते रहे हों। वही बातें बार-बार सोचते और दोहराता रहते हो जो कई वर्षों के क्रम में सोचते और दोहराते रहे। क्या मिला उन बहसों से और सोच के अंतहिन दोहराव से ? मानसिक ताप, चिंता और ब्लड प्रेशर की शिकायत या डॉयबिटीज का डाँवाडोल होना। अतः 'मन को मौत' की सजा दो ।
शास्त्र कहता है की 'सत्यम वद, धर्मं चर' सत्य बोलो और धर्म का आचरण करो। 'सत्यम ब्रूयात, प्रियं ब्रूयात, मा ब्रूयात सत्यम अप्रियम' सत्य बोलो और प्रिय बोलो। अप्रिय सत्य नहीं बोलना चाहिए। सत्य बोलना सबसे आसान कार्य है क्योंकि जैसे एक झूठ को छिपाने के लिए सौ झूठ बोलना पड़ता है वैसा सत्य बोलने में नहीं है।
किन्तु सत्य की पहचान करने में बहुत सावधानी की आवश्यकता होती है। वास्तविकता में देखा जाए तो जीवन संघर्ष में विजय और पराजय का सत्य और असत्य से कोई लेना-देना नहीं है। विजय तो हर तरीके से शक्तिशाली/ताकतवर, समर्थ की ही होती है। महान वैज्ञानिक चार्ल्स डार्विन का विकासवाद का सिद्धांत ' Survival of the fittest and strongest ', ही लागू होता है। संस्कृत में कहा गया है 'वीर भोग्या वसुंधरा' (Only brave will inherit the earth)'। जय और पराजय को सत्य और असत्य के तराजू में नहीं तौलना चाहिए।
जैसे साधू पुरुष सभी प्रकार का कष्टमय जीवन सहन कर सकता है, विद्वान पुरुष अनुकूल परिस्थितियों की प्रतीक्षा किये बिना अपना कार्य कर सकता है , नृशंस व्यक्ति कोई भी पाप कर सकता है वैसे ही एक भक्त भगवान को प्रसन्न करने के लिए अपना सब कुछ न्योछावर कर सकता है ।
सुख एवं दुःख प्रकृति रूपी भूमि पर खड़े हुए भौतिक जगत रूपी में अवस्थित वृक्ष के दो फल हैं और इस वृक्ष में दो पक्षी का भी निवास है जिनका नाम है परमात्मा (अन्तर्यामी भगवान) और जीव । जीव इस भौतिक जगत के सुख दुःख रूपी फलों को खा रहा है तथा दूसरा केवल साक्षी भाव से देख रहा है । विस्तार में यह वृक्ष ही हमारा शरीर है और इसकी जड़े जो तीनों दिशाओं में फैली है जो तिन प्रकृति के सतो , रजो एवं तमो गुणों को दर्शाती है । वृक्ष के फल के चार स्वाद क्रमशः धर्म, अर्थ, काम एवं मोक्ष है एवं विभिन्न प्रकार के संसर्ग में इनका अलग अलग स्वाद लेता है । इन भौतिक फलों का स्वाद पञ्च इन्द्रियों द्वारा ग्रहण किया जाता है , वृक्ष रूपी शरीर सात कोशों से ढका है । इस वृक्ष के आठ शाखाएं हैं और दस द्वार एवं दस प्रकार के आतंरिक वायु रूपी प्राण है ।
॥ ॐ श्री परमात्माने नमः ॥ आप सब का कल्याण हो ॥

'अथातो ब्रह्मजिज्ञासा' की व्याख्या को आप भलीभांति समझ चुके हैं । अब आगे

॥ १.१.२ ॥ जन्माद्यस्य यतः ॥

अर्थात ~ जन्मादि = जन्म आदि (उत्पत्ति , स्थिति और प्रलय ) , अस्य = इस जगत के , यतः = जिससे होते हैं , वह ब्रह्म है ।

इस पद की सामान्य व्याख्या यह है की जो जड़ - चेतनात्मक जगत सर्वसाधारण के देखने , सुनने और अनुभव में आ रहा है , जिसकी अद्भुत रचना के किसी एक अंश पर भी विचार करने से बड़े से बड़े वैज्ञानिकों को आश्चर्यचकित होना पड़ता है , इस विचित्र विश्व के जन्म आदि जिससे होते हैं अर्थात जो सर्वशक्तिमान परात्पर परमेश्वर अपनी अलौकिक शक्ति से इस सम्पूर्ण जगत की रचना कर्ता है तथा इसका धारण पोषण तथा नियमित रूप से संचालन कर्ता है एवं फिर प्रलयकाल आने पर जो इस समस्त विश्व को अपने में विलीन कर लेता है , वह परमात्मा ही ब्रह्म है ।

श्रीमद भागवत में भी यही कहा गया है-

|| परास्य शक्तिर्विविधैव श्रूयते स्वाभाविकी ज्ञानबलक्रिया च ||

अर्थात इस परमेश्वरी की ज्ञान , बल और क्रियारूप स्वाभाविक दिव्य शक्ति नाना प्रकार की ही सुनी जाती है ।
॥ ॐ श्री परमात्माने नमः ॥

॥ १.१.१ ॥ अथातो ब्रह्मजिज्ञासा ॥
॥ १.१.२ ॥ जन्माद्यस्य यतः ॥
की व्याख्या को आप भलीभांति समझ चुके हैं । अब आगे........

॥ १.१.३ ॥ शास्त्रयोनित्वात ॥

अर्थात ~ शास्त्र (वेद) के योनि-कारण अर्थात प्रमाण होने से ब्रह्म का अस्तित्व सिद्ध होता है एवं शास्त्र में उस ब्रह्म को जगत का कारण बताया ,इसलिए (इसको जगत का कारन मानना उचित है )। वेद में जिस प्रकार ब्रह्म के सत्य , ज्ञान और "अनंत सत्यं ज्ञान्मनतम ब्रह्म "(तै.उ.) और आदि लक्षण बताये गए हैं , उसी प्रकार उसको जगत का कारण भी बताया गया है ।

"एष योनिः सर्वस्य " (मा. उ.) ~ यह परमात्मा सम्पूर्ण जगत का कारण है ।

यतो वा इमानि भूतानि जायन्ते, येन जातानि जीवन्ति
यत्प्रयन्त्यभिसंविशन्ति । तद्विजिज्ञासस्व । तद्ब्रह्मेति । (तै.उ.)
ये सब प्रत्यक्ष दिखने वाले प्राणी निससे उत्पन्न होते हैं , उत्पन्न होकर जिसके सहारे जीवित रहते हैं तथा अंत में प्रयाण करते हुए जिसमें प्रवेश करते हैं , उसको जानने की इच्छा कर , वही ब्रह्म है ।

प्रभु श्रीकृष्ण जब अर्जुन को विराट रूप के बारे में जानकारी देते हैं तो अर्जुन भी कहते हैं
"नमः पुरस्तादतथ पृष्ठतस्ते नमोऽस्तु ते सर्वत एव सर्व ।
अनन्तवीर्यामितविक्रमस्त्वं सर्वं समाप्नोषि ततोऽसि सर्वः । (गीता)"
हे अनंत सामर्थ्यों वाले। आपके लिए आगे से और पीछे से भी नमस्कार है। हे सर्वात्मन। आपके लिए सब और से ही नमस्कार हो । क्योँकि अनंत पराक्रमशाली आप समस्त संसार को व्याप्त किये हुए हैं , इससे आप ही सर्वरूप हैं अर्थात सब कुछ आप ही हैं ।

Wednesday, November 13, 2013

।। अथातो ब्रह्मजिज्ञासा । १.१.१.।


॥ ॐ श्री परमात्माने नमः ॥

आप सभी के अंतर्मन में स्थापित ब्रह्मस्वरूप को प्रणाम करते हुए वेदांत - दर्शन (ब्रह्मसूत्र ) का पहला अध्याय शुभारंभ किया जा रहा है ।

परमात्मा कौन है ?

"त्वमेव माता च पिता त्वमेव |त्वमेव माता च पिता त्वमेव |
त्वमेव बंधुश्च सखा त्वमेव |त्वमेव विद्या द्रविणं त्वमेव |
त्वमेव सर्वं मम देवदेव || मुकं करोति वाचलं पंगुं लंघयते गिरिम l
यत्कृपा तमहं वन्दे परमानंदमाधवं ll

अर्थात ~ हे परमात्मा तू ही माता है, पिता भी तू ही है, तू ही भाई, तू ही सखा (सहायक) है तू ही ज्ञान तथा तू ही धन है हे देवों के देव । मेरे लिए सभी कुछ तू ही है । हे माधव यदि आपकि कृपा हो तो गुँगे भी बोल सकते है
पंगु पर्वत लांघ सकते है हे परमानन्द आपको मेरा नमन है । तो ऐसे हैं हमारे परमात्मा उनको बारम्बार नमन ।

आइये इस परमात्मा के खोज में शुरू करते है ब्रह्म सूत्र के प्रथम पाद से :-

१.१.१.।। अथातो ब्रह्मजिज्ञासा ।

अथ = अब , अतः = यहाँ से , ब्रह्मजिज्ञासा = ब्रह्मविषयक विचार आरम्भ किया जाता है ।

इस सूत्र में ब्रह्मविषयक विचार आरम्भ करने की बात कहकर यह सूचित किया गया है की ब्रह्म कौन है ? इसका स्वरुप क्या है ? वेदांत में उसका वर्णन किस प्रकार हुआ है ? इत्यादि सभी ब्रह्मविषयक बातों का विवेचन किया जाना है ।