Sunday, December 8, 2013

शास्त्र कहता है की 'सत्यम वद, धर्मं चर' सत्य बोलो और धर्म का आचरण करो। 'सत्यम ब्रूयात, प्रियं ब्रूयात, मा ब्रूयात सत्यम अप्रियम' सत्य बोलो और प्रिय बोलो। अप्रिय सत्य नहीं बोलना चाहिए। सत्य बोलना सबसे आसान कार्य है क्योंकि जैसे एक झूठ को छिपाने के लिए सौ झूठ बोलना पड़ता है वैसा सत्य बोलने में नहीं है।
किन्तु सत्य की पहचान करने में बहुत सावधानी की आवश्यकता होती है। वास्तविकता में देखा जाए तो जीवन संघर्ष में विजय और पराजय का सत्य और असत्य से कोई लेना-देना नहीं है। विजय तो हर तरीके से शक्तिशाली/ताकतवर, समर्थ की ही होती है। महान वैज्ञानिक चार्ल्स डार्विन का विकासवाद का सिद्धांत ' Survival of the fittest and strongest ', ही लागू होता है। संस्कृत में कहा गया है 'वीर भोग्या वसुंधरा' (Only brave will inherit the earth)'। जय और पराजय को सत्य और असत्य के तराजू में नहीं तौलना चाहिए।

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