अभिमान न करे

*  प्रयत्न न करने पर भी विद्वान लोग जिसे आदर दें, वही सम्मानित है । इसलिए दूसरों से सम्मान पाकर  अभिमान न करे ।

*  शांति से क्रोध को जीतें, मृदुता से अभिमान को जीतें, सरलता से माया को जीतें तथा संतोष से लाभ को जीतें ।
*  तीन चीजों पर अभिमान मत करो – ताकत, सुन्दरता, यौवन ।

*  अपनी बुद्धि का अभिमान ही शास्त्रों की, सन्तों की बातों को अन्त: करण में टिकने नहीं देता ।

*  अच्छाई का अभिमान बुराई की जड़ है ।

*  आप अपनी अच्छाई का जितना अभिमान करोगे, उतनी ही बुराई पैदा होगी। इसलिए अच्छे बनो, पर अच्छाई का अभिमान मत करो ।

*  स्वार्थ और अभिमान का त्याग करने से साधुता आती है ।

*  वर्ण, आश्रम आदि की जो विशेषता है, वह दूसरों की सेवा करने के लिए है, अभिमान करने के लिए नहीं ।

*  ज्ञान मुक्त करता है, पर ज्ञान का अभिमान नरकों में ले जाता है ।

*      जरा रूप को, आशा धैर्य को, मृत्यु प्राण को, क्रोध श्री को, काम लज्जा को   हरता है पर अभिमान सब को हरता है ।

*  अभिमान नरक का मूल है ।

*  कोयल दिव्य आमरस पीकर भी अभिमान नहीं करती, लेकिन मेढक कीचड़ का पानी पीकर भी टर्राने लगता है ।

*  कबीरा जरब न कीजिये कबुहूँ न हासिये कोए अबहूँ नाव समुद्र में का जाने का होए ।

*  समस्त महान ग़लतियों की तह में अभिमान ही होता है ।

*  किसी भी हालत में अपनी शक्ति पर अभिमान मत कर, यह बहुरुपिया आसमान हर घडी हजारों रंग बदलता है ।

*  जिसे होश है वह कभी घमंड नहीं करता ।

*  अभिमान नरक का द्वार है ।

*  अभिमान जब नम्रता का मुखौटा पहन लेता है, तब ज़्यादा ही घृणास्पद होता है ।

*  बड़े लोगों के अभिमान से छोटे लोगों की श्रद्धा बड़ा कार्य कर जाती है ।

*  जिसे खुद का अभिमान नहीं, रूप का अभिमान नहीं, लाभ का अभिमान नहीं, ज्ञान का अभिमान नहीं, जो सर्व प्रकार के अभिमान को छोड़ चुका है, वही संत है ।

*  सभी महान भूलों की नींव में अहंकार ही होता है ।

* नियम के बिना और अभिमान के साथ किया गया तप व्यर्थ ही होता है ।

*  यदि कोई हमारा एक बार अपमान करे,हम दुबारा उसकी शरण में नहीं जाते । और यह मान (ईगो) प्रलोभन हमारा बार बार अपमान करवाता है । हम अभिमान का आश्रय त्याग क्यों नहीं देते ?

*  जिस त्‍याग से अभिमान उत्‍पन्‍न होता है, वह त्‍याग नहीं, त्‍याग से शांति मिलनी चाहिए, अंतत: अभिमान का त्‍याग ही सच्‍चा त्‍याग है ।

*  लोभी को धन से, अभिमानी को विनम्रता से, मूर्ख को मनोरथ पूरा कर के, और पंडित को सच बोलकर वश में किया जाता है ।

*  ज्यों-ज्यों अभिमान कम होता है, कीर्ति बढ़ती है ।

*  जो पाप में पड़ता है, वह मनुष्य है, जो उसमें पड़ने पर दुखी होता है, वह साधु है और जो उस पर अभिमान करता है, वह शैतान होता है ।

*  अभिमान करना अज्ञानी का लक्षण है ।

*  जिनकी विद्या विवाद के लिए, धन अभिमान के लिए, बुद्धि का प्रकर्ष ठगने के लिए तथा उन्नति संसार के तिरस्कार के लिए है, उनके लिए प्रकाश भी निश्चय ही अंधकार है ।

*  उद्धार वही कर सकते हैं जो उद्धार के अभिमान को हृदय में आने नहीं देते ।

*  कभी-कभी हमें उन लोगों से शिक्षा मिलती है, जिन्हें हम अभिमानवश अज्ञानी समझते हैं ।

*  शंति से क्रोध को जीतें, मृदुता से अभिमान को जीतें, सरलता से माया को जीतें और संतोष से लाभ को जीतें ।

*  उद्धार वही कर सकते हैं जो उद्धार के अभिमान को हृदय में आने नहीं देते ।

*  जिसमें न दंभ है, न अभिमान है, न लोभ है, न स्वार्थ है, न तृष्णा है और जो क्रोध से रहित तथा प्रशांत है, वही ब्राह्मण है, वही श्रमण है, और वही भिक्षु है ।

*  जिनकी विद्या विवाद के लिए, धन अभिमान के लिए, बुद्धि का प्रकर्ष ठगने के लिए तथा उन्नति संसार के तिरस्कार के लिए है, उनके लिए प्रकाश भी निश्चय ही अंधकार है ।  

3 comments:

  1. हमारे पाँच विकारों में 'काम', 'क्रोध', 'लोभ', 'मोह' और 'अहंकार' को गिना जाता है । इनमें अंतिम विकार अहंकार है, जिसे 'अभिमान' भी कहते हैं । किसी व्यक्ति के पास जब कोई विशेष पदार्थ अथवा गुण आ जाए तो वह अपने आप को सबसे श्रेष्ठ समझने लगता है । इसे अभिमान कहते हैं । अहंकार मनुष्य को पतन की ओर ले जाता है । अहंकार के कई कारण होते हैं जैसे राजनीतिक सत्ता, संपत्ति, पदवी, ज्ञान, शिक्षा, सामाजिक प्रतिष्ठा, शारीरिक बल, सौंदर्य आदि ।
    हमारा अहंकार और अभिमान ही हमें ईश्वर से दूर किए रहता है, जिसे हम भौतिकता कहते हैं । इसी के कारण जीव अपने को ईश्वर से अलग महसूस करता है, जबकि वास्तविक रूप में वह अलग नहीं होता । इस ब्रह्मा रूपी नदी में हमें तो बहते चले जाना है। हम एक क्षण के लिए बुलबुला बन जाते हैं, फिर जिस प्रकार बुलबुला फटकर नदी में ही विलीन हो जाता है उसी प्रकार हम भी वापस इसी सृष्टि में विलीन हो जाते हैं। यदि हम किसी बहती नदी से एक कमंडल पानी निकालते हैं और कमंडल के जल को यह अभिमान हो जाए कि अब उसका अलग अस्तित्व हो गया है तो यह उसकी मूर्खता कही जाएगी। इसलिए ब्रह्मा, जीव और भौतिकता इन तीनों को ऐसा भ्रम पैदा करने का मौका न दें और केवल इसी तथ्य पर विचार करें कि संपूर्ण संसार में सिर्फ ब्रह्मा ही सत्य है, उसके सिवा कोई दूसरा सत्य इस संसार में नहीं है।

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  2. इंसान और जानवर मे फ़र्क सिर्फ़ सभ्य और असभ्य का होता है} हमारी सोचने की शक्ति के कारण हम सभ्य समाज का हिस्सा हैं समाज नियमों से चलता है और जहाँ सामाजिक नियम नहीं होते उनको हम जानवर कहते हैं
    आप जैसे से ही कुछ अच्छा लिखने की प्रेरणा मिलती है ! बहुत बहुत आभार....

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  3. आभार आपका श्री मदन शर्मा जी

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