Wednesday, October 10, 2012

पहाड़ी बाबा के गुरु (सत्यानन्द गिरी) के गुरु (स्वामी युक्तेश्वर गिरी) के गुरु थे श्री श्री लाहिड़ी महाशय। आप बनारस में रहते थे। आपको "क्रियायोग" के प्रवर्तक के रूप में देखा जाता है। आपकी शिक्षा थी कि आध्यात्मिक उन्नति के लिए 'गृहस्थ' जीवन त्यागने की जरुरत नही है। वास्तव में यही शिक्षा देने के लिए 'महावातार बाबा' ने आपको चुना था।
आप पिछले जन्म में भी महावातार बाबा के शिष्य थे। रेलवे में नौकरी के दौरान जब आप रानीखेत में तैनात थे, तब महावातार बाबा स्वयं आपको बुलाकर एक गुफा में ल

े गए थे। उन्होंने आपको आपके पिछले जन्म के कमण्डल, आसन आदि दिखलाये। जब उन्होंने आपके मस्तक को छुआ, तो आपको सब याद आ गया।
परमहंस अवस्था को प्राप्त त्रैलंग स्वामी का काशी में बड़ा सम्मान था। एक बार स्वामी जी गंगातट पर शिष्यों के साथ बैठे थे कि तभी लाहिड़ी महाशय उधर से गुजरे। लाहिड़ी महाशय भी उच्च कोटि के साधक थे पर उनकी साधना गुप्त थी। वह गृहस्थ जीवन जीते थे। वह सुंदर कपड़े पहनते और सुख के साधनों का उपभोग करते थे। लाहिड़ी महाशय को देख त्रैलंग स्वामी उठ खड़े हुए और उन्हें नमस्कार कर गले लगा लिया। लाहिड़ी महाशय के जाने के बाद शिष्यों ने पूछा, 'आप उन्हें देख कर खड़े क्यों हुए, वह तो एक गृहस्थ हैं।' त्रैलंग स्वामी बोले, 'जो तत्व मैंने सब कुछ त्यागकर प्राप्त किया, उसे उन्होंने गृहस्थ जीवन में पा लिया है। केवल ऊपर से दिखने वाले पहलू को ही वास्तविकता मान लेना गलत है। जीवन में सामान्य दिखने वाला व्यक्ति भी साधना में उच्च स्तर तक पहुंच सकता है।'

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