Thursday, October 4, 2012

पश्चिम में आने से पहले भारत को मैं प्यार ही करता था, अब तो भारत की धूलि ही मेरे लिए पवित्र है। भारत की हवा मेरे लिए पावन है, भारत अब मेरे लिए तीर्थ है।
- विवेकानन्द (विवेकानन्द साहित्य, खण्ड 5, पृष्ठ 203)

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