Saturday, September 29, 2012

सनातन जीवन दर्शन विशेष रूप से किसी सीधी राह की बात नहीं सोचता, वह जीवन की जटिलताओं को अच्छी तरह ध्यान में रखते हुए ही लम्बी और घुमावदार राह की परिकल्पना करता है। सनातन धर्म में गुरू की कल्पना परित्राता के रूप में नहीं है, नेत्र - उन्मीलक के रूप में है, वह राह चलना नहीं सिखाता, राह पहचानना सिखाता है, चलना तो आदमी को स्वयं होता है।

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