भारत का पुनरोत्थान होगा , पर वह जड़ की शक्ति से नहीं , वरण आत्मा की शक्ति द्वारा । वह उत्थान विनाश की ध्वजा लेकर नहीं , वरण शांति और प्रेम की ध्वजा से । सन्यासियों के वेश से धन की शक्ति से नहीं , बल्कि भिक्षापात्र की शक्ति से सम्पादित होगा । अपने अन्तः स्थित ब्रह्म (दिव्यता ) को जागो , जो तुम्हें क्षुधा तृष्णा , शीत-उष्ण सहन करनें में समर्थ बना देगा । विलासपूर्ण भवनों में बैठे बैठे जीवन की सभी सुखसामग्री से घिरे हुए रहना और धर्म की थोड़ी सी चर्चा कर लेना अन्य देशों में भले ही शोभा दे , पर भारत को तो स्वभावतः सत्य की इससे कहीं अधिक की पहचान है । वह तो प्रकृति से ही अधिक सत्य प्रेमी है । वह कपटवेश को अपनी अंतःशक्ति से ही ताड़ जाता है । तुम लोग त्याग करो , महान बनो । कोई भी बड़ा कार्य बिना त्याग के नहीं किया जा सकता ।
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