प्रत्येक आत्मा अव्यक्त ब्रम्ह है ।
बाह्य एवं अन्तः प्रकृति को वशीभूत करके आत्मा के इस ब्रम्हभाव को व्यक्त करना ही जीवन का चरम लक्ष्य है ।कर्म, उपासना , मनःसंयम अथवा ज्ञान , इनमें से एक , एक से अधिक या सभी उपायों का सहारा लेकर अपना ब्रम्हभाव व्यक्त करो और मुक्त हो जाओ ।
यही धर्म का सर्वस्य है । मत , अनुष्ठान पद्धति , शाश्त्र, मंदिर अथवा अन्य बाह्य क्रियालाप तो उसके गौण ब्योरे मात्र है ।
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