Sunday, July 15, 2012

सेवा

तुम जो कुछ भी कार्य करते हो , उसे तुम अपने ही भले के लिए करते हो । भगवान किसी खंदक में नहीं गिर गएँ हैं , जो उन्हें हमारी या तुम्हारी सहायता की आवश्यकता है , की हम हस्पताल बनवाकर या इसी तरह के अन्य कार्य करके उनकी सहायता कर सकें । उन्हीं की आज्ञा से तुम कर्म कर पाते हो । इसलिए नहीं की तुम उनकी सहायता करो , बल्कि इस लिए की तुम स्वयं अपनी सहायता कर सको । क्या तुम सोचते हो की तुम अपनी सहायता से एक चिटी तक को मरने से बचा सकते हो ? ऐसा सोचना घोर ईशनिंदा है । संसार को तुम्हारी तनिक भी आवश्यकता नहीं है । इस सहायता शब्द को मन से सदा के लिए निकाल दो । तुम किसी की सहायता नहीं कर सकते । यह घोर ईशनिंदा है । तुम उनकी पूजा करते हो

No comments:

Post a Comment