Tuesday, August 28, 2012

 महामृत्युंजय जप     

 ॐ त्र्यम्बकम् यजामहे सुगन्धिम्पुष्टिवर्धनम्।
 उर्वारुकमिव बन्धनात् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात।।

 इस मंत्र को संपुटयुक्त बनाने के लिए इसका उच्चारण इस प्रकार किया जाता है
 ॐ हौं जूं स: ॐ भूर्भुवः स्वः
 ॐ त्र्यम्बकम् यजामहे सुगन्धिम्पुष्टिवर्धनम्।
 उर्वारुकमिव बन्धनात् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात।।
 ॐ स्वः भुवः भूः ॐ सः जूं हौं ॐ

इस मंत्र का अर्थ है : हम भगवान शंकर की पूजा करते हैं, जिनके तीन नेत्र हैं, जो प्रत्येक श्वास में जीवन शक्ति का संचार करते हैं, जो सम्पूर्ण जगत का पालन-पोषण अपनी शक्ति से कर रहे हैं। उनसे हमारी प्रार्थना है कि वे हमें मृत्यु के बंधनों से मुक्त कर दें, जिससे मोक्ष की प्राप्ति हो जाए। जिस प्रकार एक ककड़ी अपनी बेल में पक जाने के उपरांत उस बेल-रूपी संसार के बंधन से मुक्त हो जाती है, उसी प्रकार हम भी इस संसार-रूपी बेल में पक जाने के उपरांत जन्म-मृत्यु के बन्धनों से सदा के लिए मुक्त हो जाएं, तथा आपके चरणों की अमृतधारा का पान करते हुए शरीर को त्यागकर आप ही में लीन हो जाएं।

इसलिए यहां जानते हैं इस प्रभावकारी मंत्र जप के समय किन बातों का पालन आवश्यक है -
  1. मंत्र जप के वक्त पूर्व दिशा की ओर चेहरा करके बैठें।
  2. जप कुश के आसन पर बैठकर करना श्रेष्ठ होता है।
  3. मंत्र जप रुद्राक्ष की माला का उपयोग करें।
  4. जप करते वक्त शिवलिंग, शिव की मूर्ति, फोटो या महामृत्युंजय यंत्र सामने रखें।
  5. जप काल में घी का दीप और सुगंधित धूप जलाएं।
  6. मंत्र का उच्चारण स्पष्ट और शुद्ध हो।
  7. हर रोज नियत संख्या में मंत्र जप का संकल्प लें, जिसे जरूर पूरा करें।
  8. मंत्र जप की संख्या पूरी होने तक रूद्राक्ष माला गौमुखी के अंदर ही रखें।
  9. जप का स्थान हर रोज न बदलें।
  10. यथासंभव जप के दौरान शिव का अभिषेक जल या दूध से करें।
महामृत्युंजय मंत्र जप संख्या का संकल्प पूरा होने तक किसी भी प्रकार के दुराचरण न करें। चाहे वह शरीर   से हो, बातों से हो या फिर मानसिक।

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