Saturday, August 18, 2012

मलमास या अधिमास

आज शनिवार से शुरू हो रहा है मलमास या अधिमास
 शास्त्रों में कहा गया-
यस्मिन चांद्रे न संक्रांति: सो अधिमासो निगह्यते
तत्र मंगल कार्यानि नैव कुर्यात कदाचन्।
यस्मिन मासे द्वि संक्रांति क्षय: मास: स कथ्यते
तस्मिन शुभाणि कार्याणि यत्नत: परिवर्जयेत।।

ऋग्वेद के अनुसार भी अधिकमास एक खगोलीय गणना है इसके अनुसार सूर्य लगभग 30.44 दिन में एक राशी पूरी करता है उसे सूर्य का एक सौरमास कहते हैं  12 सौर मास में  लगभग 365.25 दिन होते हैं जिसे एक सौर वर्ष कहा जाता है प्रत्येक मास  का आरम्भ सक्रांति से होता है  प्रत्येक चन्द्र मास 29.53 दिन का होता है जो अमावस्या के अगले दिन से लेकर पूर्णिमा तक होता है ,इसलिए चन्द्र वर्ष में लगभ 354.36 दिन होते हैं 
इस तरह सौर वर्ष तथा चन्द्र वर्ष में लगभ 10.87 दिन का अंतर आ जाता है और तीन वर्ष में यह अंतर एक मास का हो जाता है इस अंतर को दूर करने के लिए एक अधिक मास का नियम है  और प्रत्येक तीसरे वर्ष एक चन्द्र मास की  वृद्धि की जाती है  यह अधिक मास लगभग 32 मास 16 दिन और  4घटी के बाद आता है  सौर वर्ष के 12 मास चेत्र ,वैशाख आदि हर मास की एक राशी होती है अर्थात हर संक्रांति को सूर्य एक राशी से दूसरी राशी में प्रवेश करता है जिस चन्द्र मास में सूर्य एक राशी से दूसरी में प्रवेश नहीं करता वह अधिकमास होता है  इस वर् 16 अगस्त को सूर्य सिंह राशी में प्रवेश करेंगे त 16 सितम्बर अमावस्या को कन्या राशी में चले जाएँगे सूर्य के एक ही संक्रांति कल में दो अमावस्या आने से 18 अगस्त ,प्रतिपदा से  16 सितम्बर  अमावस्या तक भाद्रपद अधिक मास होगा भगवान श्री कृष्ण ने इस मास का नाम पुरुषोतम मास दिया है
हमारे पंचांग में तिथि, वार, नक्षत्र एवं योग के अतिरिक्त सभी मास के कोई न कोई देवता या स्वामी हैं, परंतु मलमास या अधिक मास का कोई स्वामी नहीं होता। अत: इस माह में सभी प्रकार के मांगलिक कार्य, शुभ एवं पितृ कार्य वर्जित माने गए हैं। अधिक मास स्वामी के न होने पर विष्णुलोक पहुंचे और भगवान श्रीहरि से अनुरोध किया कि सभी माह अपने स्वामियों के आधिपत्य में हैं और उनसे प्राप्त अधिकारों के कारण वे स्वतंत्र एवं निर्भय रहते हैं। एक मैं ही भाग्यहीन हूं, जिसका कोई स्वामी नहीं है। अत: हे प्रभु, मुझे इस पीड़ा से मुक्ति दिलाइए। अधिक मास की प्रार्थना को सुन कर श्रीहरि ने कहा हे मलमास, मेरे अंदर जितने भी सद्गुण हैं, वह मैं तुम्हें प्रदान कर रहा हूं और मेरा विख्यात नाम पुरुषोत्तम मैं तुम्हें दे रहा हूं और तुम्हारा मैं ही स्वामी हूं। तभी से मलमास का नाम पुरुषोत्तम मास हो गया और भगवान श्रीहरि की कृपा से ही इस मास में भगवान का कीर्तन, भजन, दान-पुण्य करने वाले मृत्यु के पश्चात श्रीहरि धाम को प्राप्त होते हैं।
मलमास और कहते हैं कि मलमास में कोई शुभ कार्य नहीं करते लेकिन यहां जाने कुछ ऐसी महत्वपूर्ण बातें जो कि आपके लिए इस माह को शुभ बनाएंगी इस माह में भगवान विष्णु का जाप आपके दारिद्रय योग का नाश करेगा । 
मलमास में वर्जित :- अग्नि पुराण  में प्रसंग आया है- वैदिक अग्नियों को प्रज्वलित करना, मूर्ति-प्रतिष्ठा, यज्ञ, दान, व्रत, संकल्प के साथ वेद-पाठ, सांड़ छोड़ना (वृषोत्सर्ग), चूड़ाकरण, उपनयन, नामकरण, अभिषेक अधिमास में नहीं करना चाहिए । मलमास में उड़द, राई, प्याज, लहसुन, गाजर, मूली, गोभी, दाल, शहद, तिल का तेल, दूषित अन्न व तामसिक भोजन का त्याग करना ही उचित है।
इस मास में इस मंत्र का प्रतिदिन जप करना उचित रहेगा-
गोवर्धनधरम् वन्दे गोपालम् गोपरूपिणम्।
गोकुलोत्सव मीशानम् गोविंदम् गोपिका प्रियम्॥

मंत्र जपते समय भगवती श्री राधिका सहित द्विभुज मुरलीधर पीत वस्त्रधारी भगवान श्रीकृष्ण का ध्यान करना चाहिए। पुरुषोत्तम मास में तुलसी-पत्र से शालिग्राम की पूजा तथा श्रीमद्भ भागवत महापुराण का पाठ करने से अनंत पुण्य प्राप्त होता है। अवंतिका (उज्जयिनी) में श्रद्धालु पुराणोक्त सप्त सागरों में स्नान करके दान-पुण्य करते हैं। पुरुषोत्तम मास का सदुपयोग आध्यात्मिक उन्नति के लिए करें। इस कृत्य से नर, नारायण बन सकता है।


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