शौच
(Purity) का अर्थ मलिनता को बाहर निकालना भी है। यह दो प्रकार के होते हैं-
बाह्य और आभ्यन्तर। बाह्य का अर्थ बाहरी शारीरिक शुद्धि से है और आभ्यन्तर
का अर्थ आंतरिक अर्थात मन वचन और कर्म की शुद्धि से है। जब व्यक्ति शरीर,
मन, वचन और कर्म से शुद्ध रहता है तब उसे स्वास्थ्य और सकारात्मक ऊर्जा का
लाभ मिलना शुरू हो जाता है। ईर्ष्या, द्वेष, तृष्णा, अभिमान, कुविचार और
पंच क्लेश को छोड़ने से दया, क्षमा, नम्रता, स्नेह, मधुर भाषण तथा त्याग का
जन्म होता है। इससे मन और शरीर में जाग्रति का जन्म होता है। विचारों में
सकारात्मकता बढ़कर उसके असर की क्षमता बढ़ती है।
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