जैसे
साधू पुरुष सभी प्रकार का कष्टमय जीवन सहन कर सकता है, विद्वान पुरुष
अनुकूल परिस्थितियों की प्रतीक्षा किये बिना अपना कार्य कर सकता है , नृशंस
व्यक्ति कोई भी पाप कर सकता है वैसे ही एक भक्त भगवान को प्रसन्न करने के
लिए अपना सब कुछ न्योछावर कर सकता है ।
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