सुख
एवं दुःख प्रकृति रूपी भूमि पर खड़े हुए भौतिक जगत रूपी में अवस्थित वृक्ष
के दो फल हैं और इस वृक्ष में दो पक्षी का भी निवास है जिनका नाम है
परमात्मा (अन्तर्यामी भगवान) और जीव । जीव इस भौतिक जगत के सुख दुःख रूपी
फलों को खा रहा है तथा दूसरा केवल साक्षी भाव से देख रहा है । विस्तार में
यह वृक्ष ही हमारा शरीर है और इसकी जड़े जो तीनों दिशाओं में फैली है जो तिन
प्रकृति के सतो , रजो एवं तमो गुणों को
दर्शाती है । वृक्ष के फल के चार स्वाद क्रमशः धर्म, अर्थ, काम एवं मोक्ष
है एवं विभिन्न प्रकार के संसर्ग में इनका अलग अलग स्वाद लेता है । इन
भौतिक फलों का स्वाद पञ्च इन्द्रियों द्वारा ग्रहण किया जाता है , वृक्ष
रूपी शरीर सात कोशों से ढका है । इस वृक्ष के आठ शाखाएं हैं और दस द्वार
एवं दस प्रकार के आतंरिक वायु रूपी प्राण है ।
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