#नागपंचमी विशेष l
अनन्तं वासुकिं शेषं पद्मनाभं च कम्बलम्। शंखपाल धार्तराष्ट्रं तक्षकं कालियं तथा।।
एतानि नव नामानि नागानां च महात्मनाम्। सायंकाले पठेन्नित्यं प्रात:काले विशेषत:।।
तस्मै विषभयं नास्ति सर्वत्र विजयी भवेत्।।
विधर्मियो को लगता है की हम सनातन धर्मी पागल है , क्योंकि हम सर्प ( जहरीला जीव ) की पूजा श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को नागपंचमी को करते हैं l किन्तु वे नहीं जानते की इसके पीछे क्या राज है l आइये संक्षेप में जानने का प्रयास करते हैं :-
सनातन संस्कृति ने पशु-पक्षी, वृक्ष-वनस्पति सकारात्मक दृष्टिकोण को ध्यान रखकर सबके साथ आत्मीय संबंध जोड़ने का प्रयत्न करती है। सांप, जीव-जंतु, चूहे आदि जो फसल को नुकसान करने वाले तत्व हैं, उनका नाश करके हमारे खेतों को हरा भरा रखता है। ज्ञातव्य है की साँप हमें कई मूक संदेश भी देता है।
जीवन रक्षा की सिख - साँप तब डसता है जब हम उसके प्राण लेने का प्रयत्न करते हैं, अर्थात अपने प्राण की रक्षा करने के लिये हमें भी सतत प्रयास करना चाहिए l
सद्गुणों का संग - सांप चन्दन या केवेड़े जैसे अति सुगन्धित वृक्षों से लिपटा होता है l सद्गुण में भी सुगंध के समान ही अन्य को आकृष्ट करने की प्रवृत्ति होती है l
समर्थ बने रहने की प्रवृत्ति - सांप सदा किसी को डसकर संचित शक्ति यानी जहर को नष्ट नहीं करता l ठीक इसी प्रकार क्रोध रूपी जहर को तब तक संचित रखें जब तक मर्मान्तिक आवश्यकता न हो l
नागमणि - इसे नागराज अपने माथे पर धारण करते हैं यह संदश देता है की समाज के मुकुटमणि जैसे महापुरुषों का स्थान हमारे मस्तिष्क पर होना चाहिए। तथा हमें प्रेम से उनकी पालकी उठानी चाहिए और उनके विचारों के अनुसार अपने जीवन का निर्माण करने का अहर्निश प्रयत्न करना चाहिए। सर्व विद्याओं में मणिरूप जो अध्यात्म विद्या है, उसके लिए हमारे जीवन में अनोखा आकर्षण होना चाहिए।
इन्ही विशेष गुणों के कारण महादेव ने सर्प को अपने गले का हार बनाकर सुशोभित किया है और नारायण ने अपनी शेषशयन बनाकर l अतः समग्र सृष्टि हितार्थ बरसते बरसात के कारण निर्वासित हुआ साँप जब हमारे घर में अतिथि बनकर आता है तब उसे आश्रय देकर कृतज्ञ बुद्धि से उसका पूजन करना हमारा कर्त्तव्य हो जाता है। कभी भी नागों को दूध पिलाने का कार्य नहीं करना चाहिए। दूध पिलाना नागों की मृत्यु का कारण बनता है ऐसे में नागपंचमी के दिन नागों को दूध पिलाना अपने हाथों से अपने देवता की जान लेने के समान है। इसलिए ऐसा करने से बचना चाहिए।
सर्वे नागा: प्रीयन्तां मे ये केचित् पृथिवीतले।। ये च हेलिमरीचिस्था येन्तरे दिवि संस्थिता।
ये नदीषु महानागा ये सरस्वतिगामिन:। ये च वापीतडागेषु तेषु सर्वेषु वै नम:।।
अनन्तं वासुकिं शेषं पद्मनाभं च कम्बलम्। शंखपाल धार्तराष्ट्रं तक्षकं कालियं तथा।।
एतानि नव नामानि नागानां च महात्मनाम्। सायंकाले पठेन्नित्यं प्रात:काले विशेषत:।।
तस्मै विषभयं नास्ति सर्वत्र विजयी भवेत्।।
विधर्मियो को लगता है की हम सनातन धर्मी पागल है , क्योंकि हम सर्प ( जहरीला जीव ) की पूजा श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को नागपंचमी को करते हैं l किन्तु वे नहीं जानते की इसके पीछे क्या राज है l आइये संक्षेप में जानने का प्रयास करते हैं :-
सनातन संस्कृति ने पशु-पक्षी, वृक्ष-वनस्पति सकारात्मक दृष्टिकोण को ध्यान रखकर सबके साथ आत्मीय संबंध जोड़ने का प्रयत्न करती है। सांप, जीव-जंतु, चूहे आदि जो फसल को नुकसान करने वाले तत्व हैं, उनका नाश करके हमारे खेतों को हरा भरा रखता है। ज्ञातव्य है की साँप हमें कई मूक संदेश भी देता है।
जीवन रक्षा की सिख - साँप तब डसता है जब हम उसके प्राण लेने का प्रयत्न करते हैं, अर्थात अपने प्राण की रक्षा करने के लिये हमें भी सतत प्रयास करना चाहिए l
सद्गुणों का संग - सांप चन्दन या केवेड़े जैसे अति सुगन्धित वृक्षों से लिपटा होता है l सद्गुण में भी सुगंध के समान ही अन्य को आकृष्ट करने की प्रवृत्ति होती है l
समर्थ बने रहने की प्रवृत्ति - सांप सदा किसी को डसकर संचित शक्ति यानी जहर को नष्ट नहीं करता l ठीक इसी प्रकार क्रोध रूपी जहर को तब तक संचित रखें जब तक मर्मान्तिक आवश्यकता न हो l
नागमणि - इसे नागराज अपने माथे पर धारण करते हैं यह संदश देता है की समाज के मुकुटमणि जैसे महापुरुषों का स्थान हमारे मस्तिष्क पर होना चाहिए। तथा हमें प्रेम से उनकी पालकी उठानी चाहिए और उनके विचारों के अनुसार अपने जीवन का निर्माण करने का अहर्निश प्रयत्न करना चाहिए। सर्व विद्याओं में मणिरूप जो अध्यात्म विद्या है, उसके लिए हमारे जीवन में अनोखा आकर्षण होना चाहिए।
इन्ही विशेष गुणों के कारण महादेव ने सर्प को अपने गले का हार बनाकर सुशोभित किया है और नारायण ने अपनी शेषशयन बनाकर l अतः समग्र सृष्टि हितार्थ बरसते बरसात के कारण निर्वासित हुआ साँप जब हमारे घर में अतिथि बनकर आता है तब उसे आश्रय देकर कृतज्ञ बुद्धि से उसका पूजन करना हमारा कर्त्तव्य हो जाता है। कभी भी नागों को दूध पिलाने का कार्य नहीं करना चाहिए। दूध पिलाना नागों की मृत्यु का कारण बनता है ऐसे में नागपंचमी के दिन नागों को दूध पिलाना अपने हाथों से अपने देवता की जान लेने के समान है। इसलिए ऐसा करने से बचना चाहिए।
सर्वे नागा: प्रीयन्तां मे ये केचित् पृथिवीतले।। ये च हेलिमरीचिस्था येन्तरे दिवि संस्थिता।
ये नदीषु महानागा ये सरस्वतिगामिन:। ये च वापीतडागेषु तेषु सर्वेषु वै नम:।।